- आचार्य हाशमी मौजूदा समय में अत्यंत प्रासंगिक: डॉ अनिल सुलभ
- 13वीं पुण्यतिथि पर पाँच मनीषियों को दिया गया स्मृति-सम्मान
पटना। पटना के कदमकुआं स्थित बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में19 जुलाई, 2024 को मैथिली, हिन्दी और ऊर्दू के मनीषी विद्वान, समर्थ साहित्यकार एवं साम्प्रदयिक सौहार्द के अग्रदूत आचार्य फ़ज़लुर रहमान हाशमी की 13वीं पुण्य स्मृति पर्व सांस्कृतिक चेतना के तौर पर मनाया गया। समारोह का उद्घाटन करते हुए, पूर्व केंद्रीय मंत्री पद्मभूषण डा सी पी ठाकुर ने कहा कि मैथिली साहित्य में आचार्य हाशमी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वे सांप्रदायिक सौहार्द के मिसाल थे।
हिन्दू और मुसलमान के बीच कोई फर्क महसूस नहीं करते थे आचार्य हाशमी
आचार्य हाशमी साम्प्रदयिक सौहार्द मंच के अध्यक्ष ए आर आज़ाद ने व्याख्यान देते हुए कहा कि कुरआन और हदीस को अक्षरश- समझने वाले आचार्य हाशमी ने वेद, पुराण और महाभारत को भी बड़ी गहाराई से अध्ययन किया था। उसी अध्ययन का नतीजा था कि वे हिन्दू और मुसलमान के बीच कोई फर्क महसूस नहीं करते थे। उनका मानना था कि आस्था का स्वरूप विभिन्न हो सकता है लेकिन इंसानियत और मानवता के स्वरूप में कहीं कोई असमानता नहीं है। मुसलमान की इंसानियत ही हिन्दू की मानवता है। इसलिए दोनों को मानवीय पहलू पर गौर करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। मानव कल्याण का वास हर हृदय में होना चाहिए। कोमल हृदय को कठोर नहीं बनाना चाहिए। यह देश सबका है। फिर से साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना को जागृत करने के लिए सबका साथ लेना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि आज देश और दुनिया को साम्प्रदायिक सौहार्द की सबसे ज्यादा जरूरत है। संप्रभुता के बाद साम्प्रदायिक सौहार्द सबसे बड़ी जरूरत है। हिन्दू हो या मुसलमान, सिख हो या ईसाई सभी इस देश के नागरिक हैं। सबको एक समान इस देश पर अधिकार है। यह सबका देश है। और सबको मिलकर इस देश को आगे बढ़ना है। सबसे पहले हमें इंसान और इंसान के बीच के फर्क के फासले को दूर करना होगा। हमें एक दूसरे को भाई समझना होगा। भाई की गलती को माफ करना होगा। और भटक रहे भाई को सही रास्ता दिखाना होगा। भारत का हृदय विश्व के लोगों से अलग और बेहद सुंदर है। इस हृदय मे ही मानवता, करुणा, दया, उपासना, आस्था और आत्मीयता बसती है। इस हृदय को मांजने की जरूरत है। और हृदय में प्रेम को बसाने की जरूरत है। अगर हम ऐसा कर पाएं तो भारत विश्व का सबसे सुंदर देश बनकर सामने फिर से खड़ा होगा। भारत को सोने की चिड़िया फिर से बनाना है। और विश्वगुरु का ताज पहनाना है तो मानवता को प्रश्रय देना होगा।
प्रो हाशमी की साहित्य-सेवाओं को किया स्मरण
बिहार लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष इम्तियाज़ अहमद करीमी ने प्रो हाशमी की साहित्य-सेवाओं को स्मरण करते हुए कहा कि हाशमी साहब ने जिस तरह उर्दू और मैथिली में अपनी कलम से कमाल पैदा किया, उसी तरह हिन्दी की भी सेवा की । इसीलिए हिन्दी ने भी, जो मुहब्बत की भाषा है, हाशमी साहब का उचित सम्मान दिया है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हो रहा यह समारोह इसका प्रमाण है।
पाली और संस्कृत का भी विशद ज्ञान था
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ ने अपने संबोधन में कहा कि आचार्य हाशमी को हिंदी, उर्दू और मैथिली के अलावा पाली और संस्कृत का भी विशद ज्ञान था।उन्होंने आगे कहा कि भारतीय-दर्शन और वैदिक-साहित्य का उन्होंने गहरा अध्ययन किया था। इसीलिए उनकी काव्य-रचनाओं में अनेक पौराणिक-प्रसंग प्रमुखता से आए हैं। साहित्यिक मंचों के भी वे कुशल और लोकप्रिय संचालक थे। साहित्य अकादमी से पुरस्कृत श्री हाशमी अकादमी के सदस्य भी बनाए गए थे। और जूरी भी। तीनों भाषाओं में उनके रचित 17 ग्रंथ उनके महान साहित्यिक अवदान के परिचायक हैं। वे एक ऐसे साहित्यकार थे, जिन्हें मैथिली, हिन्दी और उर्दू के पाठक और साहित्यकार समान रूप से सम्मान देते थे। आचार्य हाशमी सांप्रदायिक सौहार्द मंच के सौजन्य से, आयोजित इस समारोह में अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने आगे कहा कि आज जब संपूर्ण संसार में सांप्रदायिक सौहार्द पर ग्रहण लगा हुआ है, धार्मिक-कट्टरवाद, जो आतंकवाद का रूप लेता जा रहा है, आचार्य हाशमी अत्यंत प्रासंगिक हैं। सौहार्द के ऐसे ही प्रतीकों से वसुधा में शांति स्थापित हो सकती है।मौके पर पूर्व विधायक और प्यारी उर्दू के प्रधान संपादक डॉ इज़हार अहमद, साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, कुमार अनुपम, बच्चा ठाकुर, ई आनन्द किशोर मिश्र आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इन्हें मिला सम्मान
इस अवसर पर, हिन्दी सेवा के लिए वरिष्ठ लेखिका किरण सिंह, ऊर्दू के लिए लेखिका कहकशां तौहीद, मैथिली के लिए सोनी नीलू झा, शिक्षा के लिए मो असलम उद्दीन तथा सांप्रदायिक-सौहार्द के लिए डा शगुफ़्ता ताजवर को ‘आचार्य फ़ज़लुर रहमान हाशमी स्मृति-सम्मान’ से विभूषित किया गया।मंचस्थ अतिथियों ने सभी अभिनन्दित मनीषियों को, वंदन-वस्त्र, स्मृति-चिन्ह, प्रशस्ति-पत्र तथा दो हज़ार एक सौ रूपए की सम्मान-राशि देकर सम्मानित किया।पद्मविभूषण डा सी पी ठाकुर ने राष्ट्रीय पाक्षिक पत्रिका ‘दूसरा मत’ के स्मृति-विशेषांक का लोकार्पण भी किया।
इन कवियों ने किया काव्य पाठ
कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। बेगूसराय से आए वरिष्ठ कवि अशांत भोला, शमा कौसर ‘शमा’, डा अर्चना त्रिपाठी, डा तलत परवीन, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, पंकज वसंत, डा मीना कुमारी परिहार, ई अशोक कुमार, मधुरानी लाल, विद्या रानी, डा रेखा भारती मिश्र, मोईन गिरीडीहवी, डा ऋचा वर्मा, प्रीति सुमन, मो फ़हीम, सुनीता रंजन, मंजू झा, नरेंद्र कुमार आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी काव्य-रचनाओं से समारोह को यादगार बना दिया। अतिथियों का स्वागत मंच के सचिव और राष्ट्रीय पत्रिका ‘दूसरा मत’ के संपादक ए आर आज़ाद ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया।
ये लोग समारोह में थे मौजूद
वरिष्ठ व्यंग्यकार बाँके बिहारी साव, प्रवीर कुमार पंकज, प्रमेन्द्र शर्मा, शैलेश सिंह शांडिल्य, अजीत आनन्द, डा विजय कुमार, डा अता आबिदी, वीरेंद्र यादव, मनोज कुमार सिन्हा, प्रेम अग्रवाल, डा चंद्र शेखर आज़ाद आदि प्रबुद्धजन समारोह में मौजूद थे।
