- कथा सम्राट प्रेमचंद की 144वीं जयंती मनाई गई
- प्रगतिशील लेखक संघ ने संगोष्ठी का आयोजन किया
बेगूसराय | अब जिस तरह से सावन का महीना सूखा बीत जा रहा है उसी प्रकार हमारे विचार भी सूखते जा रहे हैं। परंपराएं सूख कर खत्म होती जा रही हैं। परंपराएं खत्म होने के कारण ही हमने मुनष्य बनाने का प्रशिक्षण देना बंद कर दिया है। हम उत्पाद बन गए हैं। प्रेमचंद ने अपनी कहानी और उपन्यास के माध्यम से जिन परंपराओं को समाज के सामने रखा हमें उसे जीवित रखना होगा। ये बातें मुजफ्फरपुर के प्रोफेसर रमेश ऋतंभर ने बुधवार को प्रलेस की ओर से आयोजित संगोष्ठी में कही। प्रलेस की ओर से प्रेमचंद की 144वीं जयंती के अवसर पर कर्मचारी भवन के कर्मयोगी सभागार में ‘प्रेमचंद: परंपरा का संकट’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई थी। प्रो. ऋतंभर ने कहा कि प्रेमचंद ने आम बोलचाल की भाषा को जिंदा रखा था।
साहित्य की तात्कालिकता सर्वकालिक हैं: रविंद्रनाथ राय
प्रलेस के प्रदेश महासचिव रविंद्रनाथ राय ने कहा कि शोषण के खिलाफ प्रतिरोध हमारी परंपरा है। प्रेमचंद ने अपने साहित्य में इसी परंपरा को उजगार किया है। उन्होंने कहा कि साहित्य की तात्कालिकता सर्वकालिक हैं। उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे द्वापर युग में द्राैपदी का चीरहण हुआ था। चीरहरण तत्कालीन परिस्थिति में हुआ, लेकिन यह सर्वकालिक है। किसानों की बात करते हुए कहा कि प्रेमचंद ने किसानों की लाठी को हिंसा का द्योतक नहीं बल्कि उनकी सुरक्षा का साधन बताया है। स्वामी सहजानंद सरस्वती ने भी कहा है कि लट्ठ हमारा जिंदाबाद है। किसानों को अपनी रक्षा करनी ही होगी।
परंपराएं सामंतवादी होती हैं: सुनील कुमार
संगोष्ठी में अपनी बातों को रखते हुए प्रलेस के प्रदेश कोषाध्यक्ष ने कहा कि नामवर सिंह बताते हैं कि परंपराएं सामंतवादी होती हैं। वाकई में परंपराएं सामंतवादी होती हैं। हालांकि कुछ परंपराएं अच्छी होती हैं तो कुछ खराब। जो परंपराएं अच्छी हैं उन्हें परिपाटी कहना ज्यादा उचित होगा। परंपरा और परिपाटी के बीच एक सूक्ष्म लकीर होती है। हमें इसका फर्क समझना होगा। समय के साथ हमें बदलाव को कबूलना होगा। हमारी परंपराएं भी उसी अनुरूप ढलती जा रही हैं। आज प्रेमचंद की परंपरा पर संकट छाया हुआ है। इससे हमें उनका साहित्य ही उबारेगा।
प्रेमचंद ने समय और समाज की सच्चाई को बेहिचक लिखा: राजन
विषय प्रवेश कराते हुए प्रलेस के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन ने कहा कि प्रेमचंद ने परंपराओं को तोड़ने का काम किया। उन्होंने समय और समाज की सच्चाई को बेहिचक लिखा। प्रेमचंद ने गरीब, दलित, पीड़ित को जगाने का काम किया।
सामूहिक चेतना के लेखक थे प्रेमचंद : सत्येंद्र कुमार
कवि सत्येंद्र कुमार ने कहा कि प्रेमचंद किसान-मजदूर के सामूहिक चेतना के लेखक थे। देश की व्यवस्था पूंजीपतियों के हाथों में है। ऐसे में प्रेमचंद की परंपरा की जरूरत है। सिमरिया पुस्तकालय के अध्यक्ष विशंभर प्रसाद सिंह ने भी अपनी बातों को रखा। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रलेस के जिलाध्यक्ष डाॅ. सीताराम सिंह प्रभंजन ने की और मंच संचालन शगुफ्ता ताजवर ने किया। जिला सचिव कुंदन कुमारी ने अतिथियों का स्वागत एक-एक पौधा देकर किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रामरेखा सिंह ने किया। मौके पर प्रलेस राज्य सचिव राम कुमार सिंह, नरेंद्र कुमार सिंह, अमरशंकर झा, राजेन्द्र नारायण सिंह, प्रभा कुमारी, कन्हाई पंडित, विप्लवी पुस्तकालय के सचिव अगम विप्लवी, अवनिश राजन, मनोरंजन विप्लवी आदि उपस्थित थे।