- 1982 में पहली बार स्कूलों की ग्रेडिंग की गई थी
- लागू होने के कुछ महीने बाद ही बंद भी हो गई
- विश्वविद्यालयों में भी है इसी तरह की ग्रेडिंग व्यवस्था
बेगूसराय | बच्चों की पढ़ाई कैसे बेहतर हो और स्कूल में प्रशासनिक व्यवस्था के अलावा ढांचागत व्यवस्था कैसे सुधरे, इसके लिए 1981 में ग्रेडिंग व्यवस्था बनाई गई थी। व्यवस्था ऐसी थी कि 28 मानक बिंदुओं पर ग्रेडिंग करनी थी और इसके लिए 150 अंक निर्धारित थे, लेकिन बिहार शिक्षा संहिता के अनुच्छेद 227 के तहत 1982 में शुरू की गई इस ग्रेडिंग सिस्टम ने कुछ ही महीने बाद दम तोड़ दिया। यह भी कहा जा सकता है कि अधिकारियों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया। अगर यह ग्रेडिंग सिस्टम अपने अनुरूप चल रहा होता तो निश्चित रूप से हमारी शिक्षा व्यवस्था आज की अपेक्षा कहीं अधिक मजबूत होती और बच्चे भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ले रहे होते।
जानिए, विभाग की कुंभकर्णी निद्रा कैसे टूटी
दरअसल, बिहार की विद्यालयी व्यवस्था में गुणात्मक सुधार को लेकर प्राथमिक शिक्षक साझा मंच के समन्वय समिति सदस्य रंजन कुमार लगातार काम कर रहे हैं। उन्होंने बिहार शिक्षा संहिता का अध्ययन किया तो पता चला कि स्कूलों की ग्रेडिंग को लेकर पूर्व प्रदत्त एक सशक्त कानूनी प्रावधान 1981-82 के पश्चात कभी अमल में लाया ही नहीं गया। इसके बाद उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत 8 फरवरी 2024 को शिक्षा से जानकारियां मांगी। उन्होंने विभाग से पूछा कि क्या 1981 में बनाए गए ग्रेडिंग सिस्टम को शिथिल करने या फिर इससे अधिक प्रभावी व्यवस्था देने के लिए कोई नियम बनाया गया या फिर संकल्प लिया गया तो हो जानकारी दें। पूछा कि सभी जिलों से ग्रेडिंग की जो रिपोर्ट भेजी जा रही है उसकी भी जानकारी दें। तीसरा सवाल पूछा कि ग्रेडिंग सिस्टम के तहत जिन अधिकारियों को समय-समय पर समीक्ष करनी थी, क्या वे कर रहे हैं? विभाग ने इन सवालों का जवाब दिया कि आपने सूचनाएं संकलित करके मांगी हैं उसे देना संभव नहीं है। इसके बाद ही शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव एस सिद्धार्थ ने पूरे बिहार में नई व्यवस्था के तहत स्कूलों की ग्रेडिंग के लिए जिला शिक्षा पदाधिकारी के नाम आदेश जारी किया।
इस ग्रेडिंग से होगा क्या
जिस विद्यालय को जैसी ग्रेडिंग मिलेगी उसी अनुसार, उसे विकास कार्यों और बुनियादी ढांचों को सुधारने के लिए विभाग की ओर से राशि दी जाएगी। शिक्षा की व्यवस्था सुधरने के साथ ही बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी। बच्चे बेहतर कर सकेंगे। पहले वाली ग्रेडिंग में 120 से अधिक अंक लाने वाले स्कूल मॉडल स्कूल या फिर शैक्षणिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और समुदाय उन्मुख वातावरण वाला स्कूल घोषित किए जाते थे। ऐसे विद्यालयों के लिए जब किसी शिक्षक का स्थानांतरण होता था तो यह देखा जाता था कि वह कनीय या फिर उसका प्रदर्शन कार्यरत शिक्षकों की अपेक्षा कम तो नहीं है।
‘व्यवस्था’ ने अपने सिर का बोझ शिक्षकों पर डाला
1982 में ग्रेडिंग की जो व्यवस्था बनाई गई थी उसमें विभाग और विद्यालय प्रशासन दोनों की बराबर जिम्मेदारी थी। अगर दोनों अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन सही तरीके से करते तो शिक्षा ‘व्यवस्था’ की पटरी पर सरपट दौड़ रही होती। किसी भी विद्यालय के लिए संसाधन महत्वपूर्ण होता है। नई ग्रेडिंग व्यवस्था में विभाग ने संसाधन उपयोग के लिए 12 अंक निर्धारत किए हैं। जबकि पुरानी व्यवस्था में इसके लिए करीब 33 अंक निर्धारित थे। संसाधन उपयोग में इन 6 बिंदुओं को शामिल किया गया है :- छात्रों के लिए बेंच डेस्क की उपलब्धता, छात्रों के अनुपात में कक्षा-कक्ष की उपलब्धता, जलापूर्ति और ओवरहेड टैंक की स्थिति, आइटीसी लैब का उपयोग,विज्ञान प्रयोगशाला का उपयोग और पुस्तकालय का उपयोग। इस कॉलम में जितने भी बिंदु शामिल किए गए हैं इसे पूरा करने का दायित्व विभाग का है। इन्हीं दायित्वों से बचने के लिए अधिकारियों ने अंक घटाकर 12 कर रख दिए।
जरा सोचिए, 42 साल पहले कैसी दूरदर्शिता थी
आज हम कई जगह विद्यालय के लिए भूमि का रोना रो रहे हैं। कई जगह भूमि है तो भवन नहीं। भवन है तो कक्षा-कक्ष की हालत ऐसी है कि कब गिर जाएं कहना मुिश्कल। 1981 में बने ग्रेडिंग सिस्टम में सामूहिक दायित्व था और इन बिंदुओं पर खासा ध्यान दिया गया था। आज कई उच्च विद्यालयों की मान्यता रद इसलिए की जा रही है कि उनके पास मानक के अनुरूप भवन या भूमि नहीं है। अगर वह ग्रेडिंग व्यवस्था बहाल रहती तो निश्चित तौर पर आज हमारी शिक्षण व्यवस्था ऐसी नहीं होती।
सरकार के निर्णय पर किसने क्या कहा :-
पहल स्वागत योग्य है, लेकिन अभी स्कूलों की ग्रेडिंग के लिए स्पष्ट नीति और प्रक्रिया का निर्धारण तथा ग्रेडिंग प्रदान करने हेतु कमेटी या प्राधिकार आदि निर्धारित करने सहित कई महत्वपूर्ण बातों पर निर्णय नहीं हो पाया है। उम्मीद करते हैं इसी नवंबर से राज्य के स्कूलों की ग्रेडिंग के लिए सारे निर्णयों पर अमल होना शुरू हो जाए।
रंजन कुमार, प्रधानाध्यापक, मध्य विद्यालय बीहटविद्यालयों को ग्रेडिंग प्रणाली के अंतर्गत लाना किसी शैक्षिक क्रांति से कम नहीं होगा। बिहार भर के सरकारी विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के अंदर अब अपने स्कूल को हर तरह से समृद्ध व बेहतर बनाने का एक स्पष्ट आधार या पैरामीटर मिलेगा, जिसके सहारे वे अपने शिक्षकीय पेशे को सामाजिक रूप से और अधिक स्पष्ट, सुगम और सम्मानजनक बना सकते हैं।
विनय कुमार, प्रधानाध्यापक, उत्कृष्ट मध्य विद्यालय मोहनपुरस्कूलों में एक दूसरे से बेहतर करने की होड़ पैदा करने के लिहाज से स्कूलों को ग्रेडिंग प्रणाली के साथ जोड़ना एक ठोस व ऐतिहासिक कदम है। सरकार के इस कदम से शिक्षक के रूप में आज लाखों की संख्या में नियुक्ति पा रहे वर्तमान पीढ़ी को भी एक बेहतरीन अवसर मिलेगा कि वे अपने विद्यालय को प्रत्येक क्षेत्र में उसे श्रेष्ठ शिखर तक ले जाकर खुद को साबित कर सकें।
धनंजय कुमार, प्रधानाध्यापक, मध्य विद्यालय रतौलीविभिन्न विद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों के बीच इस बात की चर्चा तेज हो चुकी है कि वे अपने विद्यालय को हमेशा A ग्रेड पर रखने की योजना पर काम की शुरुआत कैसे करें। दरअसल सरकार के इस निर्णय से विद्यालयों के अंदर जगह-जगह सकारात्मक ऊर्जा अभी से ही दिखनी शुरू भी हो चुकी है।
अनुपमा सिंह, स्नातक शिक्षक, मध्य विद्यालय बीहट
1 thought on “42 साल बाद स्कूलों में फिर से ग्रेडिंग सिस्टम लागू होगा : फरवरी में आरटीआइ से मांगी थी जानकारी, सात महीने बाद एसीएस ने दिया आदेश”
अच्छी रपट.कुछ विद्यालयों का सर्वे,विद्यार्थियों-अभिभावकों,स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता,पूर्व शिक्षकों से इस मुद्दे पर चर्चा कर वर्तमान शिक्षा की स्थिति,उसमें सुधार के उपाय और इसका जन सरोकार पर प्रकाश डालते हुए श्रृंखला में(किश्तों में) रपट प्रकाशित किया जाना अपेक्षित प्रतीत होता है.