- प्रधानाध्यापकों के प्रशासनिक और वित्तीय अधिकारों की आवश्यकता
- अधिकार नहीं मिलने से विद्यालय के समग्र विकास की संकल्पना अधूरी
बिहार में सरकारी विद्यालयों के विकास और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सुनिश्चित करने के लिए प्रधानाध्यापकों को प्रशासनिक, वित्तीय और शैक्षिक क्षेत्रों में पर्याप्त अधिकार प्रदान किए जाने की जरूरत है। वर्तमान में, बिहार के सरकारी विद्यालयों के प्रधानाध्यापक कई व्यवस्थागत चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इसका प्रमुख कारण उनके पास उपलब्ध सीमित प्रशासनिक शक्तियां और उनकी स्वायत्तता में कमी है। शिक्षा विभाग की ओर से प्रधानाध्यापकों को विस्तृत शक्तियां प्रदान करने से न केवल विद्यालय का प्रबंधन सुचारु हो सकेगा वरन विद्यालयी शिक्षा व्यवस्था में गुणात्मक सुधार भी संभव हो सकेगा।
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार मिलने से क्या फायदा
विद्यालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानांतरण, और अन्य प्रशासनिक निर्णयों का अधिकार प्रधानाध्यापक के पास होना अनिवार्य है ऐसा होने से विद्यालय खोलने बंद करने से लेकर उसकी साफ सफाई रखरखाव, पत्र और प्रतिवेदनों के डाक की सुपुर्दगी और प्राप्ति तथा समय पर घंटी लगाने आदि जैसे काम एवं भोजन बनाने परोसने आदि के लिए विद्यालय स्तर पर त्वरित निर्णय लेने में सुविधा होगी और कर्मी के अभाव में ऐसे काम रुकेंगे नहीं।
शिक्षण कार्य में बेहतर समन्वय और सहयोग के लिए ऐसा करना जरूरी
विद्यालयों में पढ़ाई के स्तर में सुधार लाने के लिए प्रधानाध्यापक को पाठ्यक्रम संचालन, सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों का प्रबंधन और शिक्षकों के मार्गदर्शन का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए। शिक्षकों के पेशेवर विकास, शैक्षिक नवाचार और प्रशिक्षण में प्रधानाध्यापक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। उनके पास पाठ्यक्रम के अध्ययन, शिक्षण-अधिगम प्रक्रियाओं का निरीक्षण और मूल्यांकन, विद्यार्थियों की प्रगति पर ध्यान देना तथा विशेष शिक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित करने का अधिकार होना चाहिए। इससे शिक्षण कार्य में बेहतर समन्वय और सहयोग होगा तथा बच्चों की शिक्षा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
निष्कर्ष : विद्यालय प्रधानाध्यापकों को प्रशासनिक, वित्तीय और शैक्षिक शक्तियां प्रदान करने से सरकारी विद्यालयों में शैक्षिक सुधार, गुणवत्ता में वृद्धि और विद्यालयी शिक्षा में व्यापक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। प्रधानाध्यापकों की आवश्यकताओं को गंभीरता से समझकर उन्हें पर्याप्त अधिकार देना चाहिए। यह कदम न केवल विद्यालय के कुशल प्रबंधन को सुनिश्चित करेगा बल्कि शिक्षा स्तर को भी ऊंचाई पर ले जाने में सहायक सिद्ध होगा।
4 thoughts on “EDUCATION : प्रभावहीन… लाचार विद्यालय प्रधान, फिर कैसे मिले शिक्षा एक समान”
सब लुटेरा हो जाएगा
आपका कथन उपयुक्त नहीं है, जिम्मेदारियों के संदर्भ में विख्यात कथाकार मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी पंच परमेश्वर में अंकित टिप्पणी गौर तलब है अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित विचारों का सुधारक होता है, जब हम राह भूलकर भटकने लगते हैं तो यही ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ प्रदर्शक हो जाता है ।’
आप इतिहास पलट कर देख लीजिए जब तक स्कूलों में प्रधानाध्यापकों को शक्ति थी तो विद्यालय व्यवस्था की कोई आम शिकायत (कुछेक अपवादों को छोड़ कर) दृष्टिगत नहीं थी, स्कूलों पर ज्यों ज्यों अफसरशाही हावी हुआ, विद्यालय प्रमुखों की शक्तियां ज्यों ज्यों छिनती गईं त्यों त्यों हमारे स्कूल अराजकता की ओर बढ़ने लगे, सब लुटेरा हो जाएगा..इसकी प्रतीक्षा शेष भी है क्या.. क्या नहीं लूटा जा रहा स्कूलों का.. और इन स्कूलों के लुटने पीटने पर अंकुश की योजनाएं हैं कहां, विद्यालयों को योजनालय बनाकर सेंट्रलाइज पॉवर सिस्टम के द्वारा पॉवरलेस प्रधानाध्यापकों को खड़ा रखते हुए सबकुछ लूटा ही तो जा रहा है, उसपर रोक है कहां ?
हां शक्तियां मिलने से ये लूट रुकेगी जरूर .. और हाँ लूट की आशंका होती है तो प्रभावशाली निगरानी के व्यवस्था की बात हो, जिम्मेदारियां छीन लेना इसका हल नहीं है ।
इस प्रकार की सोच ही शिक्षा को गर्त में ले जा रही है। जिस समाज में शिक्षकों को सम्मान नहीं मिलेगा, उस समाज का शैक्षिक उन्नयन कदापि संभव नहीं।
शानदार एवं प्रासंगिक पहल।
प्रिय मित्र रंजन जी बिहार के विद्यालयी व्यवस्था के प्रति अत्यंत सजग एवं चिंतनशील व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। आपका यह आलेख तंत्र को नींद से जगाने की दिशा में एक सराहनीय प्रयास है। अधिकाधिक शिक्षकों को इस मुहिम से जुड़ने की आवश्यकता है। यही समय की माँग भी है।
सौरभ कुमार
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित मध्य विद्यालय
लगूनियाँ सूर्यकंठ, समस्तीपुर