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Special : नई सोच के साथ ग्रामीण विकास के जनक के रूप में सदा याद किए जाएंगे अटल बिहारी वाजपेयी

आज भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है। भारत में जमीनी स्तर पर उतरकर विकास करने के जनक के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी को याद किया जाएगा।

भारत में जमीनी स्तर पर उतरकर विकास करने के जनक के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी को याद किया जाएगा। भारत के लोग यह कभी नहीं भूल सकते कि अटल जी की सोच का ही परिणाम था, जिससे आज हर गांव तक सड़क पहुंची। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री के रूप में दूसरे शासनकाल में 25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर ग्रामीण विकास मंत्रालय ने शुरू की थी। इस योजना के तहत सात लाख किलोमीटर से अधिक ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया है, जो पूरे भारत में 1,80,000 से अधिक बस्तियों को जोड़ती है।

अटलजी दिल से ज्यादा काम लेते थे। कवि हृदय होने के कारण उनमें दया की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। सहज स्वभाव था, लेकिन वक्त आने पर राष्ट्र हित में कड़ा फैसला लेने से भी उन्होंने कभी पीछे कदम नहीं खींचा। विश्व का दबाव पड़ने के कारण कांग्रेस ने परमाणु परीक्षण का अगला चरण पूरा नहीं किया था, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने पोखरण में यह परीक्षण कराकर खुद को अपने देश हित में निर्णय लेने का प्रमाण दिया।

पाकिस्तान से अच्छे संबंध बनाना चाहते थे
पाकिस्तान से उन्होंने अच्छे व्यवहार बनाने की कोशिश की, लेकिन पाकिस्तान ने जब कारगिल में घुसपैठियों को भेजकर अपने नापाक इरादों को जताने की कोशिश की तो अटल जी ने अपनी सेना को तुरंत मुंहतोड़ जवाब देने के लिए आदेश देने में हिचक नहीं की और पाकिस्तान की सीमा का उल्लंघन न करने की अन्तरराष्ट्रीय सलाह का सम्मान करते हुए धैर्यपूर्वक किन्तु ठोस कार्रवाई करके भारतीय क्षेत्र को मुक्त कराया। इस युद्ध में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण भारतीय सेना को जान माल का बहुत नुकसान हुआ और पाकिस्तान के साथ शुरू किए गए सम्बन्ध सुधार एकबार पुनः शून्य हो गए।

प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने वाले मध्यप्रदेश के पहले व्यक्ति
25 दिसम्बर 1924 को जन्मे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी निश्चय ही भारत के अमूल्य धरोहर थे। उन्होंने प्रधानमंत्री का पद तीन बार संभाला है। वे हिन्दी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक थे। उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। वह चार दशकों से संसद सदस्य थे। लोकसभा के लिए दस बार, और राज्यसभा के लिए दो बार चुने गए। उन्होंने लखनऊ लिए संसद सदस्य के रूप में कार्य किया। अपना जीवन आरएसएस के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ करने वाले वाजपेयी राजग सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे, जिन्होंने गैर कांग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 वर्ष बिना किसी समस्या के पूरे किए। आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेने के कारण इन्हें भीष्म पितामह भी कहा जाता है। वाजपेयी प्रधानमन्त्री पद पर पहुंचने वाले मध्यप्रदेश के प्रथम व्यक्ति थे।

विवादों को सुलझाने में अटल जी का कोई जोड़ नहीं
1980 में जनता पार्टी से असन्तुष्ट होकर इन्होंने जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की। 6 अप्रैल 1980 में बनी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का दायित्व भी वाजपेयी को सौंपा गया। दो बार राज्यसभा के लिए भी निर्वाचित हुए। यही नहीं विवादों को सुलझाने में भी अटल जी का कोई जोड़ नहीं था। एक सौ वर्ष से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को उन्होंने सुलझाया। राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास; नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढांचे को मजबूत करने वाले कदम उठाए। राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति भी गठित कीं।

राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी थे वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ एक कवि भी थे। उनको काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले हैं। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि थे। वे ब्रजभाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करते थे। उनकी पहली कविता ताजमहल थी। इसमें श्रृंगार रस के प्रेम प्रसून न चढ़ाकर “एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक” की तरह उनका भी ध्यान ताजमहल के कारीगरों के शोषण पर ही गया। वास्तव में कोई भी कवि हृदय कभी कविता से वंचित नहीं रह सकता।
अटल जी ने किशोर वय में ही एक अद्भुत कविता लिखी थी ‘हिन्दू तन-मन हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय’, जिससे यह पता चलता है कि बचपन से ही उनका रुझान देश हित की तरफ था। राजनीति के साथ-साथ समष्टि एवं राष्ट्र के प्रति उनकी वैयक्तिक संवेदनशीलता आद्योपान्त प्रकट होती ही रही है। उनके संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियां, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव एवं अनुभूति ने काव्य में सदैव ही अभिव्यक्ति पायी।

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हिमांशु शेखर

17 वर्षों से पत्रकारिता का सफर जारी। प्रिंट मीडिया में दैनिक भास्कर (लुधियाना), अमर उजाला (जम्मू-कश्मीर), राजस्थान पत्रिका (जयपुर), दैनिक जागरण (पानीपत-हिसार) और दैनिक भास्कर (पटना) में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में कार्य करने के बाद पिछले एक साल से newsvistabih.com के साथ डिजिटल पत्रकारिता।
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Ranjan kumar
Ranjan kumar
8 months ago

संसदीय राजनीति में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रबल पक्षधर तथा तमाम तरह की असहमति और आलोचनाओं के बीच काफी शांत रहकर तथा सहिष्णुता के प्रतीक बनकर, अनेक मोर्चे पर कई बार राष्ट्र हित में लिए गए अटल निर्णय की बड़ी लकीर खींचने वाले संवेदनमय, कविहृदय अपने पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल जी की अतुल्य स्मृतियों को सश्रद्ध नमन करता हूँ ????
अब संसद में ऐसे मनीषी दिखते कहाँ !!

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