होली क समय जब कुकुर क पोंछ में खुराफाती लड़का पटाखा बांध के ओहमे आग लगावे ला त जेतना कुकुर के दर्द होला, ओतने लइका के आनंद आवेला। आनंद त हत्यारा के हत्या कइला में भी आवेला, चोर चोरी में सफल हो जाला तब भी ओहके आनंद के अनुभूति होला, लेकिन ई कुल आनंद क्षणिक ही हो सकेला। एह सबमें एक बात छिपल बा कि दुष्ट जब कहीं पहुंचेला त लोग घरे में लुका जा ला। लोग के बीच दहशत पैदा हो जा ला। सत्य आनंद त तब आवेला, जब आपके उपस्थिति मात्र से दुसरा के चेहरा के मुस्कान बढ़ जाला। लोग धाधाइल रहे लन आपसे मिलला के। यदि आपके माध्यम से दुसरा के चेहरा पर मुस्कान आ जाव, ओहिके सत्य चित आनंद कहल जा सकेला। उहे आनंद स्थायी हो सकेला। हम किसान के लइका अउरी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ला के नाते, पढ़ाई के समय के दर्द का होला। गांव में समस्या का बा, ओहके केइसे दूर करे के प्रयास कइल जा सकेला। हम जवन दर्द से गुजरल हईं, दूसरा के ओहसे दूर रख सकीं, एहके प्रयास में लागल रहीं ना, जेहसे कुछ लोगन क चेहरा पर खुशी ला सकीं और ओकरा से हमारा अंदर भी सत्य आनंद मिल सके। यह कहना है 2001 बैच के IRTS और वर्तमान में रेलवे में मुख्य यात्री परिवहन प्रबंधक निर्भय नारायण सिंह का।
जिन संघर्षों को झेला है, उससे निर्भय बनाना चाहता हूं युवाओं को
निर्भय नाराणय सिंह का कहना है कि किसान का बेटा हूं। वह दिन भी देखा है जब पाला पड़ने के कारण मसूर की फसल खेत में ही छोड़नी पड़ती थी। गांव की उस सुगंध को कैसे भूल सकता हूं, जहां मैंने बचपन जीया है। वह भी दिन देखे हैं जब कई बुजुर्ग कहा करते थे, “पढ़ब लिखब होईब बेकार, खेती करब घर आई अनाज”। ऐसी परिस्थितियों के बीच पिता जी और उनके जैसे कई लोगों ने अपने बच्चों को गांव से निकालकर इलाहाबाद भेजा। वहां तमाम संघर्षों को झेलते हुए, जब किसी पद पर पहुंच गया तो उस मिट्टी का कर्ज उतारना हमारा फर्ज है। उस मां के कर्ज से उऋण तो नहीं हो सकता, लेकिन यदि क्षेत्र के कुछ युवाओं को प्रेरित कर अपनी या अपने से ज्यादा आगे बढ़ाने-पढ़ाने में सक्षम रहा तो मानसिक संतुष्टि तो मिल ही जाएगी।
शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए बैरिया में बढ़ा रखी है सक्रियता
अपने बैरिया क्षेत्र के लिए दो साल से समाज कार्य में जुटे निर्भय नारायण क्षेत्र के युवाओं में जागरूकता पैदा करने के साथ ही शिक्षा का अलख जगाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। उनका कहना है कि सबलोग बलिया की समस्या को बेरोजगारी और संसाधन की कमी मानते हैं, लेकिन मैं शिक्षा का खराब स्तर वहां की प्रमुख समस्या मानता हूं। बलिया में शिक्षण संस्थान हुनरमंद बनाने का काम नहीं कर रहे। वे बच्चों में सिर्फ सर्टिफिकेट बांट रहे हैं, जिससे वहां बेरोजगारी भी बढ़ी है। यदि हम बच्चों में हुनर पैदा करें तो वह स्वयं ही अपने हुनर के अनुसार काम तलाश लेगा।
