बेगूसराय | कला संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से दिनकर कला भवन में चल रहे 10वें राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव के अंतिम दिन ‘हमिदाबाई की कोठी’ नाटक का मंचन हुआ। निर्देशन अभिजीत चौधरी ने किया। नाटक के मूल लेखक अनिल बर्वे हैं एवं हिन्दी अनुवाद धनश्री डेवलीकर ने किया है।
कहानी उस समय की है जब समाज में तवायफों की इज्जत थी। उनकी पूछ होती थी। हमिदाबाई एक निपुण तवायफ थीं, जिनकी गायिकी उस समय किसी से भी बेमिसाल और अद्वितीय थी, जिसने उन्हें शिखर पर पहुंचाया। कोठी को न केवल नाम और शोहरत मिली, बल्कि ‘रुतबा और अदब भी मिला और इसे सबसे ज्यादा सम्मान मिला।
ग्रामोफोन और फिल्मों के आने से बदल गई जिंदगी
समय बदलता है और हमिदाबाई की कोठी भी बदल गई। ग्रामोफोन और फिल्मों के आगमन के साथ दर्शकों ने महंगी कोठियों से बाहर निकलना शुरू कर दिया। अपने घरों में आराम से कम खर्चीले मनोरंजन को प्राथमिकता देने लगे। हमिदाबाई के लिए आवाज रिकॉर्ड करना एक पाप है जिसे वह कभी नहीं करना चाहती क्योंकि यह उस मौलिकता में विश्वास करती है जो सर्वशक्तिमान ने उसे दी है।
… और कोठी टूट जाती है
अंतत: कोठी टूट जाती है। हमिदाबाई की सख्त नैतिकता का बोझ उन पर था जिसके परिणाम स्वरूप प्रमुख गायिका नर्तकी सईदा कोठी से चली जाती है। उसकी बेटी शब्बो जो हॉस्टल में पढ़ाई करती थी। मां द्वारा महीनों तक फीस न भेजे जाने के बाद वह घर आ जाती है। हमिदाबाई बीमारी के कारण दम तोड़ देती है।
नाटक में इन लोगों ने निभाई भूमिका
नाटक में धनश्री इंबलीकर, तारा मोहिनी सायली राव, प्रशांत गौडा, कुशल शहाणे, मून फाल्के, कुशल शहाणे, मोहित रानाडे, अजय बोराट, राहु किने, सुयश कुकरेजा, प्रवेश सकोरे नर्तक सारखी, मृषाली, पूजा आंशा
आदि ने अपने अभिनय से दर्शकों को बांधे रखा।
