- शिक्षकों की कमी के कारण प्रधानाध्यापकों का सड़क पर संघर्ष का आह्वान
बेगूसराय | प्रदेश में पिछले दो वर्षों से बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) द्वारा शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है। टीआरई-1, 2 और 3 के जरिए प्रदेश में लाखों की संख्या में शिक्षक नियुक्त हुए। बावजूद शहरी निकाय के स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर अनदेखी की जा रही है। हर बार रिक्तियां रहते हुए भी अंतिम चरण में आकर शहरी निकाय के विद्यालयों में शिक्षकों का पदस्थापन रोक दिया जाता है। प्रधानाध्यापकों द्वारा इस गंभीर समस्या से विभाग को अवगत कराने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इसी मुद्दे को लेकर प्राथमिक शिक्षक साझा मंच ने आगामी 18 मई को एक दिवसीय शिक्षक अधियाचना सत्याग्रह आयोजित करने का निर्णय लिया है।
हो क्या रहा : शिक्षक-छात्र अनुपात में असामानता
समन्वय समिति के सदस्य रंजन कुमार ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस असंतुलित रवैये के कारण शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों के शिक्षक-छात्र अनुपात में भारी असमानता उत्पन्न हो गई है। शहरी क्षेत्र के रिक्तियों के विरुद्ध नियुक्त हुए शिक्षक इकाइयों को केवल गांव में पदस्थापन के लिए विद्यालय आवंटित कर दिए जाने से गांव के स्कूलों में आवश्यकता से अधिक और प्रधानाध्यापकों के मना करने के बावजूद भी वहां शिक्षक भेज दिए गए हैं। वहीं शहरी निकाय के विद्यालय की रिक्तियां खाली ही रह जा रही हैं।
प्रधानाध्यापक अपनी बात रखेंगे : इस सत्याग्रह में शिक्षकों की कमी से प्रभावित शहरी क्षेत्र के विद्यालयों के प्रधानाध्यापक अपनी बात रखेंगे। समन्वय समिति के सदस्य रंजन कुमार के साथ तेघड़ा से संजय कुमार, बीहट से अनिल कुमार राय, विजय कुमार, कुमारी पूनम, बेगूसराय से रामशंकर पटेल सहित दर्जनों प्रधानाध्यापक इस सत्याग्रह में शामिल होकर शहरी निकाय के विद्यालयों में आवश्यकतानुसार शिक्षकों की नियुक्ति की मांग करेंगे।
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नौकरशाही चरम पर.. अधिकारी, विद्यालयी कार्यों में सुविधा प्रदान करने के बजाय दुविधा उत्पन्न करने के कारक होते जा रहे हैं । आज विभाग में हर स्तर पर अविश्वास और भय का माहौल बना हुआ है । अविश्वास का माहौल ऐसा कि राज्य स्तर के नियंत्री अधिकारी अपने नियंत्रणाधीन प्रमंडल, जिला, प्रखंड एवं विद्यालय स्तरीय प्राधिकारों की अधिकारिता और शक्तियों में लगातार कटौती करते जा रहे हैं । भय का आलम ऐसा कि विद्यालय से लेकर राज्य स्तर तक हर कोई अपने क्षेत्राधिकार में कोई निर्णय नहीं ले पा रहा और न ही उनकी योग्यता अथवा कार्यक्षमता का समुचित उपयोग हो पा रहा है । शासन में सबकी भागीदारी जैसे लोकतांत्रिक मूल्य अब अप्रासंगिक होते जा रहे हैं । केंद्रीकृत शक्तियां और एकल निर्णय राज्य को अराजकता की ओर धकेल रहा है ।