Download App from

गिरीश कर्नाड को जादू या जादुई लोक जैसे विचार बहुत पसंद थे

गिरीश कर्नाड एक जाने-माने समकालीन लेखक, एक सशक्त नाटककार, कथाकार और फ़िल्म निर्देशक थे। वे कन्नड़ और अंग्रेजी दोनों भाषाओं मे समानाधिकार लिखते थे।

गिरीश कर्नाड (9 मई 1938–10 जून 2019) एक जाने-माने समकालीन लेखक, एक सशक्त नाटककार, कथाकार और फ़िल्म निर्देशक थे। वे कन्नड़ और अंग्रेजी दोनों भाषाओं मे समानाधिकार लिखते थे। पिता बंबई मेडिकल सर्विस के डॉक्टर थे। वहां रहना उनके लिए एक अद्भुत अनुभव रहा। नाटक कंपनी आती तो शो देखने के लिए पास मिलते थे। मलेरिया से बीमार कंपनी के लोग दवाई के लिए उनके पिता के पास आते और कलाकारों से गिरीश जी का परिचय हो जाता था। आज कर्नाड साहब की पुण्यतिथि है।

ऑक्सफोर्ड में रहते हुए लिखा था पहला नाटक ‘ययाति’

कर्नाड ने अपना पहला नाटक, समीक्षकों द्वारा प्रशंसित ययाति (1961) ऑक्सफोर्ड में रहते हुए लिखा था। यह एक पौराणिक राजा की कहानी पर केंद्रित है। वस्तुत: भारतीय साहित्य के इतिहास में साहित्य की अनेक विधाएं विकसित हुई हैं। अन्य साहित्यिक विधाओं की अपेक्षा नाटक का अपना एक अलग स्वरूप है। नाटक, समाज के बदलते स्वरूप को उसकी सर्जनात्मकता संभावनाओं के साथ प्रस्तुत करता है। गिरीश कर्नाड कन्नड़ के महत्वपूर्ण लेखक थे। साहित्य के अलग-अलग क्षेत्रों में सक्रिय रहने वाले श्रेष्ठ लेखकों के साथ यदि उनकी तुलना की जाए तो नाटक की विधा में उनका योगदान अन्यतम है। कन्नड़ नाटकों के इतिहास में पहली बार उन्होंंने नाटक विधा को उसकी समग्रता में साधा है।

नाटकों के माध्यम से जाति व्यवस्था और लिंग भेद पर करारा प्रहार

कर्नाड, नाटकों में जाति व्यवस्था और लिंग भेदभाव को एक साथ उठाते हुए दिखते हैं, जो उनके नाटकों को सघन और यथार्थवादी बनाते हैं। समग्र रूप में विचार करने से कर्नाड के जीवन और उनके रचना-संसार की एक बड़ी ही रोचक बात जो सामने निकलकर आती है वह यह कि कर्नाड को जादू या जादुई लोक जैसे विचार बहुत पसंद थे। वह हिंदी और कन्नड़ सिनेमा में एक अभिनेता, निर्देशक और पटकथा लेखक के रूप में काम करते हुए भारतीय सिनेमा की दुनिया में सक्रिय थे। उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री और पद्म भूषण से नवाजा। विश्व रंगमंच दिवस पर उन्हें शांति संदेश पढ़ने का अवसर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिला।

मंडल-कमंडल के समय लिखा “तलेदंड” नाटक

गिरीश कर्नाड ने 1989 में कन्नड़ में “तलेदंड” शीर्षक से नाटक उस समय लिखा जब मंडल और मंदिर का प्रश्न पुरज़ोर पर था। इस ज्वलंत प्रश्न से यह स्पष्ट हो रहा था कि शरणाओं द्वारा उठाए गए प्रश्न हमारे समय के लिए कितने सटीक हैं। लेखक ने इस समूचे घटनाक्रम को बसवण्णा के जीवन से जुड़े तमाम लोक-विश्वासों को झटकते हुए एक संस्कृतिक जनांदोलन की तरह रचा है।

“हयवदन” में स्री-पुरुष संबंधों की त्रासदी को दर्शाया

गिरीश कर्नाड जी ने कन्नड़ भाषा में स्री-पुरुष संबंधों की त्रासदी, अधूरेपन, बिखराव एवं त्रिकोण प्रेम को लेकर एक महत्वपूर्ण नाटक “हयवदन” रचा है। रचनात्मकता, कथावस्तु तथा शिल्प की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण नाटक है। गिरीश कर्नाड परंपरा और आधुनिकता से बारबार टकराते हैं। इस नाटक में प्राचीन काल से चली आ रही देवी-देवताओं के प्रति आस्था धीरे-धीरे टूटती है।

कर्नाड के नारी पात्र बड़े सशक्त होते हैं

गिरीश कर्नाड के नारी पात्र बड़े सशक्त होते हैं। यह बात ययाति में अधिक उभरकर आई है। स्त्री पात्र- शर्मिष्ठा, देवयानी, स्वर्णलता और चित्रलेखा को पुरुषों से अधिक शक्तिशाली दिखाया गया है। कर्नाड स्वीकार करते हैं, “वास्तव में कई स्त्रियों ने मुझसे कहा कि मेरे स्त्री पात्र सबसे ज़्यादा विश्वसनीय हैं। यह भी कहा कि ऐसे पात्र भारतीय रंगमंच पर अन्यत्र उन्हें कम ही देखने को मिले हैं। (रंगप्रसंग)

Picture of हिमांशु शेखर

हिमांशु शेखर

17 वर्षों से पत्रकारिता का सफर जारी। प्रिंट मीडिया में दैनिक भास्कर (लुधियाना), अमर उजाला (जम्मू-कश्मीर), राजस्थान पत्रिका (जयपुर), दैनिक जागरण (पानीपत-हिसार) और दैनिक भास्कर (पटना) में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में कार्य करने के बाद पिछले एक साल से newsvistabih.com के साथ डिजिटल पत्रकारिता।
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Share this post:

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

HUF Registration Services In IndiaDigital marketing for news publishers

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: wetter in Indien morgen

राशिफल

error: Content is protected !!
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x