- प्रलेस बेगूसराय इकाई की ओर से मासिक रचना गोष्ठी आयोजित
बेगूसराय। प्रगतिशील लेखक संघ बेगूसराय इकाई की ओर से मासिक रचना गोष्ठी के तहत प्रलेस जिला सचिव कवयित्री कुंदन कुमारी की पहली काव्य पुस्तक “दर्द का दर्पण” पर परिचर्चा का आयोजन कर्मयोगी सभागार कर्मचारी भवन, बेगूसराय में किया गया। अध्यक्षता जिला अध्यक्ष डॉ सीताराम प्रभंजन एवं संचालन डॉ शगुफ्ता ताज़वर ने की।

नारी विमर्श पर केंद्रित है दर्द का दर्पण काव्य पुस्तक : प्रो रवीन्द्र नाथ राय
परिचर्चा में बिहार प्रलेस राज्य महासचिव प्रो रवीन्द्र नाथ राय ने कहा कि दर्द का दर्पण पुस्तक नारी विमर्श पर केंद्रित है। इसमें सहज पारिवारिक जीवन की रचनाएं हैं। स्त्री के भीतर का उबाल है। मध्य वर्ग की बिसात की कविता है। उन्होंने कहा कि कला जब यथार्थ से मिलती है तब कविताएं मजबूत बनती है। इस काव्य पुस्तक में बहुआयामी कविताएं हैं। इसमें व्यापक अनुभूति है। कविता जब मन से जन तक पहुंचती है तो वह जीवन की कविता बन जाती है।

वैज्ञानिक चेतना की पैरवी कर रही दर्द का दर्पण की कविताएं : प्रो चंद्रभानु प्रसाद सिंह
पूर्व मानविकी संकाय अध्यक्ष लनामिवि दरभंगा के प्रो चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि यह काव्य पुस्तक कवयित्री की एक सशक्त आवाज है। जो कि हक और हकुक के लिए संघर्षरत हैं। इसमें पीड़ा नहीं संघर्ष है। इसमें स्त्री-पुरुष संतुलन की बात है। इसमें इनदोनों के आदर्श स्थिति को दर्शाया गया है। कविताएं व्यक्ति से चलकर समाज तक पहुंचती है। इस पुस्तक की कविताएं वैज्ञानिक चेतना की पैरवी कर रही है। यह बदलाव की कविताएं हैं। बेहतरीन की प्रत्याशा में कविता लिखी गई है। परिवर्तनगामी कविता है। इसमें प्रेम के कोमल स्वर है।
कवयित्री ने जो भोगा उसे ही लिखा : राजेंद्र राजन
प्रलेस के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव राजेंद्र राजन ने कहा कि औरत जो महसूस करती है वही इस पुस्तक में है। आज लैगिंग विषमता काफी बढ़ गई है। कवयित्री ने जो भोगा उसे ही लिखा। यह युग की कविता है। जीवन की व्यथा है, छटपटाहट है। प्राचार्य डॉ रामनरेश पंडित रमण ने कहा कि यह पुस्तक दर्दीली कविताओं का संग्रह है। दर्द को समेटकर प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। लेखिका ने दर्द को यथार्थ भोगा है उसी को व्यक्त किया है। पूर्णिया प्रलेस सचिव नूतन आनंद ने कहा कि पितृ सत्ता का विरोध नहीं होगा तो समाज आगे नहीं बढ़ेगा। पुरुष प्रधान व्यवस्था नहीं बदलेगा तबतक लोकतंत्र जिंदा नहीं रहेगा। आवाज उठाना ही लोकतंत्र है। हमें बोलने की आजादी है उसी को लेखिका ने उठाया है। महिलाओं के लिए आवाज उठायी है। अब हमें घर से निकलना ही पड़ेगा, आवाज उठाना पड़ेगा। पुस्तक की लेखिका कुंदन कुमारी ने कहा कि गरीबी में जिया, अभावग्रस्त जीवन रहा लेकिन आज उसी शख्स की पहली पुस्तक पर परिचर्चा आयोजित है। यह मेरे लिए आश्चर्य से कम नहीं है।

इन लोगों ने परिचर्चा में लिया हिस्सा
परिचर्चा में प्रलेस राज्य अध्यक्ष अरविंद प्रसाद, प्रलेस राष्ट्रीय सचिव सत्येन्द्र कुमार, प्रलेस राज्य कोषाध्यक्ष सुनील सिंह, पूर्णिया प्रलेस अध्यक्ष देव आनंद, प्रलेस के वरिष्ठ कवयित्री मुकुल लाल, प्रेस खगड़िया जिला सचिव राजेंद्र कुमार राजेश ने भी पुस्तक पर गंभीर चर्चा की।
मौके पर ये लोग थे मौजूद
इस अवसर पर डॉ राम अकबाल सिंह, अधिवक्ता दुर्गा प्रसाद राय, प्रलेस राज्य सचिव राम कुमार सिंह, समय सुरभि अनंत के संपादक नरेंद्र कुमार सिंह, अनिल पतंग, राजकिशोर सिंह, अमरनाथ सिंह, दीनानाथ सुमित्र, दीपक सिन्हा, स्वाति गोदर, राजेंद्र प्रसाद सिंह, अमर शंकर झा सुब्बा, एस मनोज, रंजन झा, कमल वत्स, मनोरंजन विप्लवी, अमन कुमार शर्मा, राम बहादुर यादव, आदि उपस्थित थे।








