‘‘जब मैं सितारों के सफर पर जाऊंगा, तो तुम सब मुझे अलविदा कहने आना। जाने से पहले मैं ‘ मायाबिनी रतिर बुकुट’ एक आखिरी बार गाऊंगा और चला जाऊंगा। मेरे जाने के बाद तुम रोना नहीं, मेरे इस गीत को गुनगुनाना। मैं तुम में से एक हूं। तुम में से किसी एक में हमेशा जिंदा रहूंगा। ऐसा जुबिन दा ने कहा था।” मुझे ये बात असम के एक गाड़ी चालक से मालूम हुई।
रविवार की शाम, बोंगाईगांव रिफाइनरी में हिंदी अधिकारी शरद भैया के आमंत्रण पर हम दोस्तों के साथ हिन्दी कहानी और कविता पर बातचीत करने के लिए असम बोंगाईगांव आए। हमें स्टेशन से गेस्ट हाउस तक लाने के लिए जिस गाड़ी को भेजा गया उसमें ज़ुबिन दा का गाना चल रहा था। चालक के चेहरे पर एक जानी पहचानी सी उदासी छाई थी। इस उदासी से मेरा सामना कई बार हुआ है। ऐसी ही उदासी मैंने अपने पिता के चेहरा पर देखा था, जब दादा और दादी की मृत्यु कुछ समय के अंतराल पर हुआ था। नाना के मरणोपरांत मां की आंखों में ऐसी ही उदासी महीनों तक छाई रही।

हम सबने अपनी आवाज का वो हिस्सा खोया जिसमें सबके हिस्से की बातें शामिल होती थीं
चालक के चेहरे को देखकर लग रहा था कि अगर वो कर्म से बंधा न होता तो शायद अपने निजी एकांत में जुबिन दा को सुनते हुए, अपनी स्मृतियों में उन्हें खंगाल रहा होता। किसी एक लम्हे को याद कर मुस्कुराता, जिसमें दूर से ही सही जुबिन दा को उसने देखा था। हम सब अपना सामान सहित गाड़ी में बैठ गए। चालक ने अपना नाम बताया और ये भी कि जुबिन दा अब हमारे बीच नहीं रहे। मैंने अपना नाम बताते हुए, उनसे कहा कि ‘हमें मालूम है मनोज जी। हम सबने अपनी आवाज का वो हिस्सा खोया है, जो वो बातें कहता था। जिसमें सबके हिस्से की बातें शामिल होती थीं।’
The final goodbye to the legend, #BelovedZubeen.
You will always be alive in our hearts and thoughts. https://t.co/FRYccUh3cy
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) September 23, 2025
बाबा नागार्जुन की मंत्र कविता को आवाज दी थी जुबीन गर्ग ने, सुनिए
हर तरफ एक सी चुप्पी और हर चेहरे पर एक सी उदासी
स्टेशन से गेस्ट हाउस तक का सफर तकरीबन 30 मिनट का था। जहां तक पहुंचने के लिए तकरीबन दो बार नेशनल हाईवे और तीन- चार ग्रामीण इलाके से होकर गुजरना पड़ता है। गाड़ी की रफ्तार में एक नरमी थी। मानों चालक केवल चलाने के लिए गाड़ी चला रहा है। वो हमारे साथ होते हुए भी हमारे साथ नहीं था। ‘मायाबिनी रतिर बुकुट’ लगातार बज रहा था। यात्रा के दौरान खिड़की से झांकने पर बाहर जो दिख रहा था। वो स्मृति पटल पर सदा के लिए अमर हो गया है। प्रत्येक घर और दुकानों के बाहर दीया और मोमबत्ती जल रही है। सब्जी और रोजाना इस्तेमाल की चीजों के बाजार में हलचल नहीं है। लोग खामोशी से अपना सामान लेकर जा रहे हैं। हर तरफ एक सी चुप्पी और हर चेहरे पर एक सी उदासी छाई हुई है।
इस तरह से बनते हैं रॉकस्टार
आदमी को इतना ही बड़ा होना चाहिए कि उसके बगल में बैठा आदमी खुद को छोटा महसूस ना करे। जुबिन दा इतने ही बड़े आदमी थे। वो अपने लाइव कंसर्ट से कमाए हुए पैसों को या तो वहीं बांटकर जाते अथवा रास्ते में मिलने वाले हर जरूरतमंद को देते जाते। उन्हें असम और बंगाल का रॉकस्टार कहा जाता है। लेकिन असम के लोगों के लिए वो जुबिन दा थे। जिनसे बात करना, मिलना, तस्वीरें लेना, अपने सुख–दुःख बांटना सुगम, सहज और सरल था। वो राह चलते किसी के हाथ देने पर रुक जाते थे। वो अपने लोगों को अपनों की तरह मानते थे। शायद इसलिए ही हर किसी को एक अपने के खो जाने का गम है।
एक ऐसा कलाकार जिसके भीतर राजनीतिक चेतना थी
जुबिन महज एक गायक अथवा अभिनेता नहीं थे। वो एक संपूर्ण कलाकार थे। एक ऐसा कलाकार जिसके भीतर राजनीतिक चेतना थी। जो संवेदनशील एवं अपनी भाषा के प्रति अकूत प्रेम से भरा हुआ था। इसलिए उन्होंने मुंबई को नहीं बल्कि अपनी जमीन और हवा में घूमना और सांस लेना चुना। आज सुबह से शाम तक IOCL के आसपास के इलाकों में टहलता रहा। सड़कें सुनसान हैं, दुकानों पर तालें पड़ी हैं। लोगों की जुबान पर एक ही नाम और उसकी कहानियां हैं। हर कोई जुबिन दा से जुड़ी खबरों को सुन रहा है या फिर उनके बारे में बातचीत कर रहा है। ये लोग उस एक जनसैलाब में किसी कारणवश नहीं गए लोग हैं। उन्हें अंतिम बार देखने के लिए उमड़े जनसैलाब के बारे में लिखा जाए तो शायद बहुत सी बातें हमारे जीवन को थोड़ा सुंदर बनाने लायक निकल कर आएंगी।
दुनिया पूछे कि जुबीन गर्ग ने अपनी जिंदगी में क्या कमाया था… तो उन्हें यह वीडियो दिखा देना।#ZubeenGarg pic.twitter.com/07j8tAf4xS
— Ashish Yadav (@alkumar25000) September 23, 2025
शानदार तरीके से हरदिल अजीज कलाकार को आखिरी सलाम, जुबिन दा आप हमेशा साथ रहेंगे।