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भगत सिंह ने कहा था-अन्याय के सामने खामोश रहना भी अपराध है

  • शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती पर नागरिक संवाद समिति ने स्वर्ण जयंती पुस्तकालय से शहीद स्मारक तक मार्च निकाला
  • सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी पर चुप रहना लोकतंत्र से गद्दारी होगी

बेगूसराय। शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती पर रविवार को नागरिक संवाद समिति ने स्वर्ण जयंती पुस्तकालय से शहीद स्मारक तक मार्च निकाला। भगत सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनके अधूरे सपने को पूरा करने एवं उनके विचारों को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया। इस अवसर पर सभा को नागरिक संवाद समिति के सह संयोजन नवल किशोर सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता वशिष्ठ कुमार अंबष्ट, अवकाश प्राप्त प्रधानाध्यापक अमरनाथ सिंह, संतोष ईश्वर, प्रसिद्ध लेखक एसएन आजाद, वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण प्रियदर्शी, रंगकर्मी अवधेश कुमार सिन्हा, जन कवि कुंवर कन्हैया, वार्ड पार्षद शगुफ्ता ताजवर, संतोष महतो, एस मनोज, केदार भास्कर, पुष्कर प्रसाद सिंह, बबलू मिश्रा, चंद्रदेव वर्मा, नुरुल इस्लाम जिम्मी, जीशान अहमद, रौशन देव सहित अन्य लोगों ने सभा को संबोधित किया।

वक्ताओं ने कहा कि भगत सिंह का वह कथन कि आज़ादी के बाद सत्ता पर भूरे अंग्रेज काबिज हो जाएंगे आज बिल्कुल सच साबित हो रहा है। अंग्रेजी हुकूमत के जाने के बाद जिस सत्ता से जनता को न्याय और बराबरी की उम्मीद थी,  वही सत्ता अब जनता की आवाज़ को कुचलने और असहमति को देशद्रोह करार देने में जुटी है।

वक्ताओं ने प्रख्यात पर्यावरणविद और शिक्षाविद सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी को इसी भूरे अंग्रेजी मानसिकता का ताजा उदाहरण बताया। कहा कि जिस शख्स ने शिक्षा और पर्यावरण के जरिए लद्दाख़ ही नहीं, बल्कि पूरे देश और दुनिया को राह दिखाई, विश्व स्तरीय दर्जनों पुरस्कार जीतकर भारत का मान सम्मान बढ़ाया। उसे देशद्रोह जैसी धारा में फंसाना लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला है। सभा में वक्ताओं ने भगत सिंह के विचारों को दोहराते हुए कहा गया कि क्रांति की तलवार विचारों की धार से तेज होती है और सोनम वांगचुक का संघर्ष इसी धार का प्रतीक है। शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण की उनकी सोच जनता को जागरूक करती है और यही बात सत्ता को असहनीय हो गई है।

वक्ताओं ने यह भी याद दिलाया कि भगत सिंह ने कहा था अन्याय के सामने खामोश रहना भी अपराध है। देशद्रोही वे नहीं हैं जो पर्यावरण और जनता के अधिकारों की रक्षा करते हैं, बल्कि वे हैं जो जनता की जमीन, जल-जंगल-जमीन और संसाधनों को कॉरपोरेट घरानों के हवाले कर रहे हैं। 

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प्रवीण प्रियदर्शी

1998 से पत्रकारिता का सफर जारी। हिंदी मासिक पत्रिका ‘दूसरा मत’ से लिखने की शुरुआत। राष्ट्रीय जनमुक्ति पत्रिका का संपादन। दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम के लिए स्क्रिप्ट राइटिंग। दैनिक अखबार हिंदुस्तान, दैनिक हरिभूमि (हरियाणा), प्रभात खबर और दैनिक भास्कर में पत्रकारिता की।
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