यूं तो बेगूसराय में वामपंथियों ने प्रारंभ में ही नारा दिया कि कॉमरेड सूरज ने ललकारा है, सातों सीट हमारा है। ऐसा एक बार हुआ भी। उसके बाद से ही बेगूसराय को लेनिनग्राद या मिनी मास्को के नाम से पुकारा जाने लगा। एक बार के बाद कभी भी सातों विधानसभा सीट पर वामपंथियों का झंडा बुलंद नहीं हो सका। बखरी, बछवाड़ा, तेघड़ा, मटिहानी, बेगूसराय की सीट पर कई बार वामपंथियों का झंडा लहराया है। वर्तमान में अगर विधानसभा के चुनाव में वामपंथ की स्थिति की बात करें तो यह सिमट कर तेघड़ा व बखरी के अलावे कहीं नहीं दिखता। बछवाड़ा और मटिहानी में मामूली अंतर से वामपंथ पीछे रह गई।
वामपंथियों का रहा है दबदबा
अब बात तेघड़ा की करें तो अब तक के चुनाव में वामपंथियों का दबदबा रहा है। तेघड़ा के वोटरों ने अधिकतम बार लाल झंडा को पसंद किया है। हालांकि इस विधानसभा क्षेत्र का परिसीमन भी बदलता रहा है। 1967 से लेकर 2010 तक तेघड़ा विधानसभा बरौनी के नाम से जाना जाता रहा। इस दौरान यहां से CPI के उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे। 2010 में नए परिसीमन के आधार पर बरौनी विधानसभा से वीरपुर प्रखंड को अलग किया गया। फिर तेघड़ा विधानसभा बना तो अब तक हुए तीन चुनाव में प्रत्येक बार चेहरे और दल बदलते रहे हैं। तेघड़ा विधानसभा क्षेत्र का गठन वर्ष 1951 में हुआ। 1951 से लेकर 1967 तक तेघड़ा विधानसभा रहा और उसके बाद इसका नाम बदलकर बरौनी विधानसभा कर दिया गया।
वामपंथी किला को बचा पाएंगे रामरतन?
वर्ष 2025 में विधानसभा का चुनाव होना है। सभी संभावित प्रत्याशी चुनाव मैदान में दिखने लगे हैं। चुनाव की घोषणा एक सप्ताह अंदर होने की संभावना है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या वामपंथी अपनी जमीन बचा पाने में सक्षम होंगे या फिर NDA गठबंधन तेघड़ा की सीट पर कब्जा जमाएंगे। क्या वर्तमान विधायक रामरतन सिंह फिर से अपनी सीट बचाने में सफल होंगे? महागठबंधन का साथ और तेघड़ा में हुए विकास के आधार पर वामपंथी उम्मीदवार अपना झंडा फिर से फहराने के प्रयास में जुटे हैं। एनडीए अपनी जीत को लेकर आशान्वित है, वहीं दूसरी ओर निवर्तमान विधायक को अपने किए कार्यों पर भरोसा है। जबकि जनसुराज ने मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने एवं जीत हासिल करने के लिए कमर कस लिया है। जनसुराज के कार्यकर्ता मतदाताओं से संपर्क कर बच्चों के भविष्य के लिए मतदान करने की अपील कर रहे हैं।
टिकट को लेकर NDA में मारामारी
एनडीए केन्द्र व राज्य सरकार के विकास कार्य के बलबूते चुनावी मैदान में उतरने को तैयार है। NDA में शामिल महत्वपूर्ण घटक दल भाजपा से केशव शांडिल्य ने जोर लगा रखी है। चर्चा है कि इस बार टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय उतर सकते हैं। जबकि पासोपुर निवासी भाजपा के वरिष्ठ नेता अमरेन्द्र कुमार अमर और पूर्व एमएलसी रजनीश कुमार भी प्रदेश नेतृत्व के सामने तेघड़ा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं। वहीं JDU की ओर से पार्टी जिलाध्यक्ष पूर्व एमएलसी रूदल राय अौर भूमिपाल राय ने एड़ी का जोर लगा रखा है। हालांकि चर्चा है कि शिक्षा विभाग के पूर्व ACS एस सिद्धार्थ भी यहां से चुनाव लड़ सकते हैं। अगर एस सिद्धार्थ यहां से चुनाव लड़ते हैं तो फिर भूमिपाल राय और रूदल राय की भूमिका कैसी रहेगी?
पिछले चुनाव परिणाम पर एक नजर
तेघड़ा विधानसभा में हुए पूर्व के चुनाव पर नजर डालें तो 1952 में कांग्रेस की टिकट पर रामचरित्र सिंह ने चुनाव में जीत हासिल की थी। वहीं 1957 में फिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर रामचरित्र सिंह ही जीते। 1962 के चुनाव में सीपीआइ से कॉ. चन्द्रशेखर सिंह ने जीत हासिल की। फिर तेघड़ा विधानसभा नहीं रहकर 1967 से 2007 तक बरौनी विधानसभा रहा। 2008 में तेघड़ा विधानसभा अस्तित्व में आया और वर्ष 2010 में भाजपा से ललन कुंवर ने लाल झंडा को शिकस्त देकर जीत हासिल की। फिर 2015 में राजद के उम्मीदवार वीरेन्द्र महतो ने जीत हासिल की। 2020 में महागठबंधन के उम्मीदार सीपीआई के रामरतन सिंह ने वीरेन्द्र महतो को 47,979 मतों से पराजित कर जीत हासिल की।
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