- जन संस्कृति मंच ने प्रेमचंद को किया याद
बेगूसराय। कमलेश्वरी भवन मे जन संस्कृति मंच ने गुरुवार को कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद को याद किया। इस अवसर पर प्रेमचंद की कहानी ” बंद दरवाजा ” का पाठ किया गया तथा जनवादी गीत गाये गए । जसम के राज्य सचिव रंगकर्मी दीपक सिन्हा ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि प्रेमचंद हमेशा से हमारी प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। वो ब्राह्मणवाद-सामंतवाद-पूंजीवाद-साम्राज्यवाद-कोर्पोरेटपरस्त फासीवाद से लड़ने, शोषित-पीड़त-दलित-वंचित की वास्तविक मुक्ति के लिए लड़ने, दलित और स्त्री की मुक्ति के लिए लड़ने, सभी के लिए ऊंची से ऊंची तालिम हासिल करवाने के लिए लड़ने के प्रेरणा देते हैं। अगर कहा जाये तो वो एक उर्दू-हिन्दी में सबसे पहले सामाजिक याथार्थ के संस्थापक के रुप मे जाने जाते रहे हैं। साम्प्रदायिकता के सवाल और प्रेमचंद विषयक विचार गोष्ठी मे विषय प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार सह साहित्यकार प्रवीण प्रियदर्शी ने कहा कि प्रेमचंद ने जिस साम्प्रदायिकता के आगमन की ओर अपने आलेख व कहानियों मे संकेत दिया था, वह आज के संदर्भ मे बहुत आगे चला गया है। प्रगतिशील वाम आंदोलन को अपने संगठनो को और ठोस करने की जरुरत है। प्रेमचंद न सिर्फ किसान और मजदूरों के कथाकार हैं बल्कि वो जनसरोकार से जुड़ी हर समस्याओं पर बात करते हैं।
साम्राज्यवाद और पूंजीवाद के खिलाफ खड़ा होता है प्रेमचंद का साहित्य
युवा रंगनिर्देशक इम्तियाजुल हक डब्लू ने चिंता ब्यक्त करते हुए कहा कि लोगों को उर्दू नहीं आती है फिर भी उसे पाकिस्तानी या बंगलादेशी कह कर पुकारा जाता है क्योंकि वह मुस्लमान है। यह एक अलग तरह के नफरत का दौर चल पड़ा है। लोग भयभीत हैं। रंगकर्मी संतोष कुमार राही ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियां राजा – महाराजाओं की दास्तान नही है बल्कि वह आम आदमी के दर्द को बयान करती है। प्रेमचंद का साहित्य साम्राज्यवाद और पूंजीवाद के खिलाफ खड़ा होता है जिसके साथ – साथ साम्प्रदायिकता चलती रहती है।
प्रेमचंद की रचनाओं को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत : दिवाकर
साहित्यकार ललन लालित्य ने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य से फिरंगी इतना खौफ खाते थे कि उन्होंने उनकी कृति ” शोजेवतन ” की कई प्रतियों को खोज – खोज कर जला डाला था। आज भी प्रेमचंद की कहानियो से स्कूल के टेक्स्ट बुक से निकाला जा रहा है। नई पीढी प्रेमचंद को नही जान पा रही है। उनके पास पहुंचाने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी होगी। कमल वत्स ने साम्प्रदायिकता व फासीवाद के खिलाफ कई संगठनो के एका पर बल दिया। माले जिला सचिव दिवाकर प्रसाद ने कहा कि फासीवाद के इस दौर मे लोग डरे हुए हैं। उन्हें डरने की जरुरत नही है। हमारे साथ प्रेमचंद का जनसाहित्य है जो सम्राजयवाद के मुखौटा को उखाड़ फेंकने मे सक्षम है। इसके लिए गांव से ले कर शहर तक प्रेमचंद की रचना और विचारो को ले जाना चाहिए। आइसा के अजय कुमार ने कहा कि जिन्हे साम्प्रदायिकता या फासीवाद का अर्थ भी नही मालूम वो भी अल्पसंख्यको को देशद्रोही कहने लगे हैं और यह काम सत्तापक्ष के लिए कई दक्षिणपंथी मीडियाकर्मियों ने किया है।
अपने भीतर के दक्षिणपंथियों को शिनाख्त करने की जरूरत : कुंवर कन्हैया
वरिष्ठ रंगकर्मी सह कवि कुंवर कन्हैया ने कहा कि प्रेमचंद ने कहा है कि प्रेचंद ने सही कहा कि साम्प्रदायिकता संस्कृति की दुहाई दे कर आता है। आज सत्तापक्ष वही कर रहा है लेकिन हमे सच बोलना होगा। हमें अपने भीतर के दक्षिणपंथियो की शिनाख्त भी करनी होगी, तभी साम्प्रदायिकता की सीढी चढ़ कर खड़े फासीवाद को नीचे घकेलना होगा। वरिष्ठ साहित्यकार विशंभर सिंह ने दिनकर और प्रेमचंद की तुलना करते हुए कहा कि दोनो के साहित्य मे आम जन के तत्व विद्धमान हैं। कवियत्री प्रभा कुमारी ने प्रेमचंद को याद करते हुए एक कविता का पाठ किया। अध्यक्षता करते हुए शिक्षाविद् राजाराम आर्य ने कहा कि प्रेमचंद ने कहा था कि साम्प्रदायिकता को सीधे तौर पर आने में लज्जा आती है लेकिन आज बातें बहुत आगे चली गई है , साम्प्रदायिकता ने फासीवाद का क्रूर चेहरा अख्तियार कर लिया है। इसके खिलाफ जंग को तेज करना होगा।
मौके पर ये लोग थे मौजूद
इस अवसर पर ललित यादव, रंगकर्मी अमरेश कुमार, युवा रंगकर्मी चंदन वत्स , पंकज कुमार सिन्हा अधिवक्ता, अधिवक्ता कैलाश महतो, अधिवक्ता भारतभूषण मिश्रा, अधिवक्ता दीपक कुमार, रंगकर्मी सह फिल्मकार मिथिलेश कांति , युवा रंगकर्मी यथार्थ सिन्हा, मजदूर नेता चंद्रदेव बर्मा, किसान नेता बैजु सिंह आदि कई बुद्धिजीवी संस्कृतिकर्मी मौजूद थे ।