बेगूसराय | जन संस्कृति मंच (जसम) की नाट्य इकाई रंगनायक-द लेफ्ट थियेटर, बेगूसराय ने अख्तर अली लिखित नाटक ‘एक अजीब दास्तां’ की प्रस्तुति दिनकर कला भवन, बेगूसराय के रिहर्सल स्पेस में दी। नाटक राजनीति में ईश्वर और धर्म के इस्तेमाल पर गहरी बहस को प्रस्तुत करता है। नाटक की कथा एक आरोपी पर ईश्वर की हत्या के जुर्म में चल रहे मुकदमे के इर्द-गिर्द घूमती है। नाटक की कहानी और पात्रों के माध्यम से लेखक ने बहुत ही प्रभावशाली ढंग से इस मुद्दे को उठाया है। इसमें आरोपी ने इस कारण से ईश्वर की हत्या करने का दावा किया है क्योंकि उसकी नजर में ईश्वर कमजोर हो गया है। वह अब किसी काम का नही रहा। दूसरी ओर वकील का कहना है कि ईश्वर की हत्या हो ही नहीं सकती है क्योकि वह निराकार है। नाटक इसी तानबाना में चलता है कि अब नए ईश्वर की जरूरत है जो एकदम आधुनिक होगा। वह साइंस की तमाम तकनीक से लैस होगा।
नाटक में आमलोगों के लिए क्या
नाटक के माध्यम से धर्म के नाम पर होने वाले आडंबरों और राजनीतिकरण को उजागर किया गया है, जो कि समाज में बहुत बड़ा मुद्दा है। नाटक दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि धर्म और ईश्वर के नाम पर होने वाले कार्यों का सही अर्थ क्या है?


नाटक में किसने क्या किया
रोचक विषय और सशक्त अभिनय शैली से सजे इस नाटक का निर्देशन युवा रंगनिर्देशक यथार्थ सिन्हा ने किया। नाटक में आरोपी की भूमिका संजय कुमार ने निभाई। न्यायाधीश की प्रभावशाली भूमिका में मंजीत कुमार थे। वकील की भूमिका में यथार्थ सिन्हा ने बेहतरीन अभिनय किया। बैकग्राउंड संगीत सौरभ कुमार ने दिया। कार्यक्रम का संचालन दीपक सिन्हा ने किया।
हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए… की जीवंत प्रस्तुति
नाटक शुरू होने से पूर्व पटना जसम के कलाकार पुनीत पाठक, प्रमोद यादव, अनिल अंशुमन और निर्मल नयन ने कई गीत प्रस्तुत किए। दुष्यंत कुमार की रचना “हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए” को पुनीत पाठक ने अपनी स्वर-धारा से जीवंत कर दिया। कार्यक्रम का उद्घाटन डॉ. भगवान प्रसाद सिन्हा, प्रसिद्ध जनगायक कृष्ण कुमार निर्मोही, विजय पासवान और नवल किशोर सिंह ने डफली बजाकर किया। धन्यवादज्ञापन युवा कवि गुंजेश गुंजन ने किया।
















