बेगूसराय | बिहार में मतदाता पुनरीक्षण (Voter List Revision) का काम चल रहा है। बेगूसराय नगर की पूर्व विधायक अमिता भूषण ने इस पूरी प्रक्रिया को एक स्कैम बताते हुए कहा है कि कानूनी और संवैधानिक तौर पर यह आयोग की रूटीन प्रक्रिया है जो मतदाता सूची को शुद्ध किए जाने के उद्देश्य से समय समय पर होता है। इसके माध्यम से मतदाता सूची को अद्यतन किया जाता है ताकि योग्य नागरिकों का नाम सूची में शामिल हो सके और अवैध या मृत व्यक्तियों के नाम हटाया जा सके। बावजूद हम सब इसके खिलाफ हैं। राहुल गांधी सड़क पर हैं। प्रधानमंत्री और ज्ञानेश कुमार को खुलेआम सदन से सड़क तक चोर बोला जा रहा है। कारण पूरा मामला इस प्रक्रिया को हथियार बनाकर चुनाव को किसी विशेष दल के पक्ष में प्रभावित करने का है। और इसकी पूरी पोल पट्टी राहुल गांधी जी ने आधिकारिक प्रेस वार्ता कर खोल दी है। चुनाव आयुक्त सवालों के जवाब की जगह दल विशेष के प्रवक्ता जैसा व्यवहार कर रहे हैं।
20 हजार वोटों का हेरफेर
यह समझने और नजर रखने की चीज है कि आखिर वोटर लिस्ट से घपला कैसे किया जा रहा है। दो साधारण लेकिन गंभीर बात है। औसतन एक विधानसभा में 350 बूथ होते हैं। अब पहला काम यह किया जा रहा है कि बूथ से चिन्हित मतदाताओं के 20 नाम काट दिए जाएंगे। चूंकि एक बूथ पर औसतन 1200 मतदाता हैं तो ज्यादा बड़ी बात नहीं दिखती है। अब उसी बूथ में 20 ऐसे मतदाताओं के नाम जोड़े जाते हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता और वोटिंग के दिन विशेष दल को जिम्मेदारी दी जाती है कि आपको इनलोगों के नाम पर वोट करवाना है। इस हिसाब से हर बूथ पर तकरीबन 40 वोट एक पक्ष के बढ़ जाने हैं। इनका अगर 70% भी क्रियान्वयन हुआ तो लगभग हर बूथ पर 25 से 30 वोट। एक बूथ के हिसाब से यह आंकड़ा छोटा दिखता है पर विधानसभा स्तर पर यह आंकड़ा 350 बूथ के हिसाब से लगभग 20 हजार वोटों का होता है जो किसी भी क्षेत्र के रिजल्ट का रुख बदलने को पर्याप्त है।

ग्रामीण की बजाय शहरी इलाकों में ज्यादा गड़बड़ी
चुनाव आयोग और भाजपा का कहना है कि बूथ पर हर दल के प्रतिनिधि होते हैं। बिल्कुल होते हैं, इसीलिए इस तरह की हेराफेरी ग्रामीण की बजाय शहरी इलाकों में ज्यादा किए जाते हैं, जहां एक-दूसरे को लोग कम जानते हैं। इस तरह एक बिल्कुल साधारण तरीके से पूरी मतदान प्रक्रिया को हाइजैक किया गया है। बेगूसराय विधानसभा के वोटर लिस्ट की छानबीन के क्रम में ऐसे सैकड़ों उदाहरण साक्ष्य के तौर पर हैं जहां जिंदा लोगों को मरा घोषित किया गया है। सिर्फ इसलिए कि उनके आकलन में ये उनके मतदाता नहीं हैं। मरे लोगों का सूची में नाम है। दर्जनों ऐसे नाम सामने आए हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं है और शहरी इलाकों में ऐसे ज्यादातर केस मिले हैं।

संघ वालों को दी गई है BLO की जिम्मेदारी
आयोग का कहना है BLO देख रहा है, पदाधिकारी देख रहा है। 70 प्रतिशत BLO को संघ की शाखा से उठाकर जिम्मेदारी दे दी गई है। पदाधिकारी की साख इतनी भर है कि वो कुर्सी पर हैं बाकि उन्हें खास नेताओं की चाकरी, उनके चुनाव प्रचार और रील बनाने से फुर्सत मिले तब तो वो वोटर लिस्ट देखें। अगर सरकार और आयोग के पास डाटा है तो आज कांग्रेस के पास भी डाटा है उन घपलों और वोट चोरी की। लोकतंत्र की मजबूती का मूल आधार एक सटीक और पारदर्शी मतदाता सूची है। चुनाव आयोग इस आधारभूत सिद्धांत से इतर अलग ही भूमिका में है।









