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शिक्षा देने का जुनून ऐसा कि दुधमुंहे बच्चे को घर छोड़ गढ़पुरा में संचालित कर दिखाया कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय

कठिन परिस्थितियों के बावजूद शिक्षा की लौ को जलाए रखने की पर्याय हैं मध्य विद्यालय बीहट की स्नातक शिक्षक अनुपमा सिंह। आज उन्हें राजकीय शिक्षक पुरस्कार मिलेगा।
  • 32 वर्षों के सेवाकाल में कई ऊंचाइयों को छूआ है मध्य विद्यालय बीहट की शिक्षिका अनुपमा सिंह ने
  • पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में आज राजकीय शिक्षक सम्मान से नवाजी जाएंगी अनुपमा सिंह
  • गंगा में डॉल्फिन के संरक्षण को लेकर स्कूली बच्चों संग किया था काम, बच्चे को मिला था नेशनल अवार्ड

शिक्षा न तो आसानी से मिलती है और न ही आसान होता है सरल तरीके से ज्ञान की बूंदों को समान रूप से बच्चों के कंठ में उतारना। कठिन परिस्थितियों के बावजूद शिक्षा की लौ को जलाए रखने की पर्याय हैं मध्य विद्यालय बीहट की स्नातक शिक्षक अनुपमा सिंह। आज शिक्षक दिवस पर हम उनके उन अनछूए पहलुओं को आपके सामने रखेंगे जो इस बात की तस्दीक करेगा कि उन्हें राजकीय शिक्षक पुरस्कार दिया जाना सर्वथा उचित है।

शुरुआत हम 2004-05 से 2007 के उस कालखंड से करेंगे जब सरकार प्रदेश में कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय स्थापित कर रही थी। अधिकांश जिलों में एनजीओ के माध्यम से यह विद्यालय संचालित किया जा चुका था। बेगूसराय में भी इसे संचालित करना था, लेकिन जिले में उत्पन्न हो रहे व्यवधान के कारण NGO और विभागीय अधिकारियों तक ने अपने हाथ खड़े कर दिया। इसके बाद विभाग को अनुपमा सिंह का नाम सुझाया गया। कस्तूबरा गांधी आवासीय विद्यालय संचालन को लेकर उन्हें जिला नोडल अधिकारी बनाया गया। उन्होंने अपनी जिद्द के बूते पांच प्रखंडों में ऐसे विद्यालय की बुनियाद रखी। एक दिन देर शाम उन्हें जानकारी दी गई कि गढ़पुरा के कुम्हारसो स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में पथराव हो गया है। अपने दुधमुंहे बच्चे को छोड़कर तत्काल गढ़पुरा पहुंची। उग्र ग्रामीणों को समझाया। इतना ही नहीं दिव्यांग होने के बावजूद कई दिनों तक गढ़पुरा में ही कैंप किया। ग्रामीणों का विश्वास जीता और धीरे-धीरे बच्चियां स्कूल आने लगीं। उन्हीं की सफलता का परिणाम है कि आज जिले के 18 प्रखंडों में कस्तूरबा विद्यालय संचालित हो रहे हैं।

विद्यालय को सामाजिक परिवर्तन का केंद्र बनाया :  वर्ष 2007-2017 तक मध्य विद्यालय, डुमरी में कार्यरत रहीं। यहां उन्होंने मुस्लिम व अन्य वंचित समुदायों को शिक्षा, खेल, सांस्कृतिक कार्यक्रम और उद्यमिता के माध्यम से जोड़ते हुए विद्यालय को सामाजिक परिवर्तन का केंद्र बनाया। ‘सूर्योदय कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र’, ‘अरुणिमा स्वाध्यायशाला’ व ‘अंचरा कुटीर उद्योग’ जैसी पहलें शुरू कीं। आसपास की महिलाओं को रोजगार का साधन बताया। यहां उन्होंने विद्यालय में खेल के मैदान न होने पर तत्कालीन समादेष्टा बीएमपी 8 से संवाद कायम का बीएमपी के प्रैक्टिस ग्राउंड में बच्चों को अभ्यास सत्र के लिए प्रवेश की अनुमति दिलाई।
मुस्लिम महिलाओं को उद्यमिता से जोड़ने का प्रयास।
उपलब्धियां
  • बेस्ट टीम लीडर अवॉर्ड एन पी जी ई एल के जेंडर को ऑर्डिनेटर के रूप में ।
  • उत्कृष्ट शिक्षक पुरस्कार 2016
  • शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए बेगूसराय नगर सम्मान ।
  • बिहार नारी शक्ति सम्मान
  • शिक्षा विभाग द्वारा राज्य स्तर पर “टीचर ऑफ द मंथ” पुरस्कार
    (शिक्षा विभाग, बिहार सरकार द्वारा ) सहित स्थानीय से लेकर राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर इन्हीं कई विशिष्ट सम्मान सम्मान प्रदान किए जा चुके हैं ।
डॉल्फिन को बचाने के उद्देश्य से गंगा के किनारे स्कूली बच्चों के साथ अभियान चलातीं अनुपमा सिंह।

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हिमांशु शेखर

17 वर्षों से पत्रकारिता का सफर जारी। प्रिंट मीडिया में दैनिक भास्कर (लुधियाना), अमर उजाला (जम्मू-कश्मीर), राजस्थान पत्रिका (जयपुर), दैनिक जागरण (पानीपत-हिसार) और दैनिक भास्कर (पटना) में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में कार्य करने के बाद पिछले एक साल से newsvistabih.com के साथ डिजिटल पत्रकारिता।
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