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दिनकर बीमार और कुंठित राष्ट्र का इलाज करने वाले ‘राष्ट्रवादी थेरेपिस्ट कवि’ हैं : रामाज्ञा शशिधर

वाराणसी। 23 सितंबर को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 117वीं जयंती के अवसर पर मालवीय चबूतरा द्वारा बीएचयू परिसर में विचार गोष्ठी, काव्य पाठ और पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। अध्यक्षता प्रतिबद्ध कवि, किसान लेखक एवं हिंदी विभाग के अध्यापक रामाज्ञा शशिधर ने की। मंच का कुशल संचालन शोध छात्र राणा झा ने किया। शोध छात्र गणेश पाण्डेय ने उपस्थित सभी अतिथियों, वक्ताओं और प्रतिभागियों का धन्यवाद व्यक्त किया।चबूतरा संस्थापक रामाज्ञा शशिधर ने कहा कि दिनकर बीमार और कुंठित राष्ट्र का इलाज करने वाले ‘राष्ट्रवादी थेरेपिस्ट कवि’ हैं। केवल लोक और इतिहास के कवि ही नहीं हैं बल्कि वे इतिहास में जाकर वर्तमान को समझने और उससे चेतना ग्रहण करने वाले महान चिंतक भी हैं। उन्होंने कहा कि भूमंडलीकरण और उपभोक्तावाद के दौर में हमारी सांस्कृतिक अस्मिता और लोकतंत्र गंभीर संकट में है। ऐसे समय में दिनकर की कृतियों को पढ़ना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उनके विचारों और दृष्टिकोण को आत्मसात करना अत्यंत आवश्यक है। शशिधर ने कहा कि दिनकर का मानवतावादी, जनतांत्रिक और समावेशी दृष्टिकोण हमें यह सीख देता है कि समाज की टिकाऊ प्रगति और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए हमें अपने इतिहास, जीवन मूल्य और मूल से जुड़े रहना होगा। दिनकर के साहित्य चिंतन में व्याप्त मुक्ति की चेतना न केवल साहित्यिक अध्ययन में बल्कि वास्तविक जीवन में भी मार्गदर्शन का स्रोत बन सकती है।

दिनकर आम जनमानस के कवि : अभिषेक उपाध्याय

हिंदी विभाग के छात्र अभिषेक उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा कि दिनकर केवल साहित्य के छात्रों के ही कवि नहीं हैं, बल्कि वे आम जनमानस के भी कवि हैं। उन्होंने ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ कविता का ओजपूर्ण पाठ किया।

दिनकर मूलतः राष्ट्रवादी धारा के समन्वयवादी कवि हैं : शैलेंद्र सिंह

नगर के सांस्कृतिक पत्रकार शैलेंद्र सिंह ने कहा कि दिनकर मूलतः राष्ट्रवादी धारा के समन्वयवादी कवि हैं। उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना और मानवतावाद का अद्भुत समन्वय दिखाई पड़ता है। दिनकर ग्राम सिमरिया की हिंदी छात्रा प्रियांशु ने अपने संवाद में साझा किया कि दिनकर के गांव में बच्चों को बचपन से ही साहित्य और कविता के प्रति प्रोत्साहित किया जाता है। गांव की दीवारें विज्ञापनों से नहीं बल्कि कविताओं और साहित्यिक उद्धरणों से सजी रहती हैं। प्रियांशु ने ‘रश्मिरथी’ के प्रथम सर्ग का पाठ भी किया।

दिनकर की कविताओं का किया पाठ 

शोध छात्र प्रशांत दुबे ने दिनकर की कविता ‘परदेशी’ का पाठ करते हुए उसके मानवीय और सामाजिक संदेशों को उजागर किया। शोध छात्रा शिवानी शर्मा ने ‘कोई अर्थ नहीं’ कविता का पाठ किया। छात्र प्रवीण कुमार ने अपने वक्तव्य में दिनकर को एक भविष्य दृष्टा कवि के रूप में प्रस्तुत किया।
हिंदी छात्र जावेद अंसारी ने दिनकर की कविता “तकदीर का बंटवारा” का पाठ किया।

दिनकर नए भारत के निर्माण के लिए चार संस्कृतियों का विराट नक्शा पेश करते हैं : ईश्वर दत्त

शोध छात्र ईश्वर दत्त ने ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पर विस्तार से विचार रखा। दत्त ने कहा कि दिनकर नए भारत के निर्माण के लिए चार संस्कृतियों का विराट नक्शा पेश करते हैं। बीएचयू के छात्र हर्ष कुमार, अमन, नीतू, भारत आनंद आदि ने आयोजन में सक्रिय भूमिका दर्ज की।

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प्रवीण प्रियदर्शी

1998 से पत्रकारिता का सफर जारी। हिंदी मासिक पत्रिका ‘दूसरा मत’ से लिखने की शुरुआत। राष्ट्रीय जनमुक्ति पत्रिका का संपादन। दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम के लिए स्क्रिप्ट राइटिंग। दैनिक अखबार हिंदुस्तान, दैनिक हरिभूमि (हरियाणा), प्रभात खबर और दैनिक भास्कर में पत्रकारिता की।
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