बेगूसराय (मंझौल)। मंझौल में चल रही नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा क्रम में शुक्रवार को व्यासपीठ से पूज्य प्रेमाचार्य पीताम्बरजी महाराज ने कहा कि भक्ति भय निवारक औषधि है। उन्होंने समुपस्थित श्रद्धालुओं को अजामिल उद्धार की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि कैसे एक पतित जीव भी प्रभु नाम स्मरण से उद्धार पा सकता है। अजामिल पहले एक धर्मपरायण ब्राह्मण था। बाद में वह सांसारिक मोह में फंसकर पापमय जीवन जीने लगा। अंतिम समय में उन्होंने अपने पुत्र ’नारायण’ को पुकारा। इससे उन्हें प्रभु नारायण के नाम का स्मरण हुआ। यमदूतों के स्थान पर विष्णुदूत वहां प्रकट हुए। अंततः अजामिल को मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस प्रकार महाराजजी ने अजामिल के माध्यम से संदेश दिया कि हर जीव में प्रभु का अंश है। यदि वह प्रभु नाम का स्मरण करता है, तो उसका उद्धार निश्चित है। भक्ति की महिमा अनंत है। भगवान अपने भक्त के वश में होते हैं। उन्होंने कहा कि भक्त हो तो ध्रुव व प्रहलाद जैसा। ध्रुव ने बचपन में तपस्या कर भगवान के दर्शन कर लिए थे। आज भी आसमान में ध्रुव तारा अलग दिखाई देता है। कथा व्यास ने भक्त ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि एक बार उत्तानपाद सिंहासन पर बैठे हुए थे। ध्रुव भी खेलते हुए राजमहल में पहुंच गए। उस समय उनकी अवस्था पाँच वर्ष की थी। बेटा उत्तम राजा उत्तनपाद की गोद में बैठा हुआ था। ध्रुव भी राजा की गोद में चढ़ने का प्रयास करने लगे। सुरुचि को अपने सौभाग्य का इतना अभिमान था कि उसने ध्रुव को डाँटा और कहा कि इस गोद में चढ़ने का तेरा अधिकार नहीं है। अगर इस गोद में चढ़ना है तो पहले भगवान का भजन करके इस शरीर का त्याग कर और फिर मेरे गर्भ से जन्म लेकर मेरा पुत्र बन। तब तू इस गोद में बैठने का अधिकारी होगा। इसके बाद उन्होंने तपस्या प्राप्त कर वह स्थान प्राप्त किया जो किसी को मुश्किल से प्राप्त होता है।
श्रीमद्भागवत कथा का केंद्र है आनंद
कथावाचक ने श्रीहरि की महिमा का गुणगान करते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत कथा का केंद्र है आनंद। आनंद की तल्लीनता में पाप का स्पर्श भी नहीं हो पाता। भागवत कथा एक ऐसा अमृत है कि इसका जितना भी पान किया जाए मन तृप्त नहीं होता है। उन्होंने कहा कि हिरण्यकश्यप नामक दैत्य ने घोर तप किया। तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए व कहा कि माँगो जो माँगना है। यह सुनकर हिरण्याक्ष ने अपनी आँखें खोली और ब्रह्माजी को अपने समक्ष खड़ा देखकर कहा-प्रभु मुझे केवल यही वर चाहिए कि मैं न दिन में मरूँ, न रात को, न अंदर, न बाहर, न कोई हथियार काट सके, न आग जला सके, न ही मैं पानी में डूबकर मरूँ, सदैव जीवित रहूँ। ब्रह्माजी ने उसे वरदान दे दिया। लेकिन हिरणकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप भागवत विष्णु को शत्रु मानते थे। उन्होंने अपने पुत्र को मारने के लिए तलवार उठाया था कि खंभा फट गया उस खंभे में से विष्णु भगवान नरसिंह का रूप धारण करके जिसका मुख शेर का व धड़ मनुष्य का था, प्रगट हुए। भगवान नरसिंह अत्याचारी दैत्य हिरण्याक्ष को पकड़कर उदर चीर कर वध किया तथा परम भक्त प्रहलाद की रक्षा की। अतः हमें भी खुद को भगवान के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। भगवान के शरण में जाने के उपरांत सारे कष्ट, भय, दोष और विकार स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं।
मौके पर ये लोग थे मौजूद
मौके पर सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति मंझौल के अध्यक्ष कन्हैया कुमार, कोषाध्यक्ष अमित कुमार सिंह गप्पू, सचिव सिम्मी शिवम सिंह, संयुक्त सचिव केशव सरकार, सदस्य गोपी, शिशुपाल सिंह, केशव, प्रवीण, संरक्षक विजय प्रसाद सिंह, मनोज भारती, गोविन्द, वीरू, धीरज, सन्नी, मुरारी, गुलशन, प्रियांशु, अजय कुमार चुलबुल, आदित्य, सचिन, रवि, छोटे, अनुराग, रिशुराज, श्यामजी समेत काफी संख्या में पुरुष एवं महिला श्रद्धालु मौजूद थे।