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शास्त्रीय संगीत में फ्यूजन हो रहा तो इसमें बुरा क्या, अच्छी बात है दो संस्कृतियां एक साथ मिल रहीं : कलापिनी कोमकली

शास्त्रीय संगीत में फ्यूजन होना अच्छी बात है। लोग इसे पसंद कर रहे हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि शास्त्रीय संगीत को फ्यूजन या पाश्चात्य संगीत से डरना चाहिए।
  • हमारा शास्त्रीय संगीत इतना भी कमजोर नहीं कि इसमें फ्यूजन से डरा जाए
  • जैसे हमारा समाज अंतरजातीय विवाह को स्वीकार रहा, उसी तरह फ्यूजन को भी स्वीकारना चाहिए
  • संगीत तो आश्रय देने की जरूरत, राजा-महाराजाओं के समय इसे सहेजने की व्यवस्था बेहतर थी

बेगूसराय | शास्त्रीय संगीत में फ्यूजन होना अच्छी बात है। लोगों को सुनने में अच्छा लगता है। इसे पसंद भी कर रहे हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि शास्त्रीय संगीत को फ्यूजन या पाश्चात्य संगीत से डरना चाहिए। हमारा शास्त्रीय संगीत इतना भी कमजाेर नहीं कि फ्यूजन से डरा जाए। पूरी दुिनया में संगीत के मामले में हमारा शास्त्रीय संगीत किताब या ग्रंथ की तरह है जिसे सभी संगीतकार पढ़ते हैं। ये बातें संगीत नाटक अकादमी से पुरस्कृत ग्वालियर घराने की गायिका कलापिनी कोमकली ने ‘शास्त्रीय संगीत में फ्यूजन से इसकी मौलिकता खो तो नहीं जाएगी‘, सवाल के जवाब में कही।
आगे उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से हमारा समाज अंतरजातीय विवाह को स्वीकार कर चुका है और कोई समस्या नहीं हो रही है। या फिर किसी दूसरे देश के अच्छे कार्यों को अपने यहां लागू करते हैं। उसी तरह शास्त्रीय संगीत में फ्यूजन का मिलना है। फ्यूजन के मिलने पर अट्‌टहास करना बेकार है। अच्छी बात है कि शास्त्रीय संगीत में फ्यूजन के आने से संगीत के श्रोता और बढ़ेंगे। इससे शास्त्रीय संगीत को काफी फायदा पहुंचेगा।

शास्त्रीय संगीत ‘दरबार’ का संगीत बनकर तो नहीं रह गया?
इस सवाल के जवाब कलापिनी कोमलकी ने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है। हां, यह बात सही है कि राजा-महाराजाओं ने शास्त्रीय संगीत को दरबार में जगह दी। शास्त्रीय संगीत गाने वालों को प्रश्रय दिया। प्रश्रय नहीं मिलता तो ऐसे कलाकारों का परिवार कैसे चलता? आज देखते हैं कि आर्ट एंड कल्चर डिपार्टमेंट है। स्कूल-कॉलेजों में संगीत शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है। जब तक इन्हें आजीविका का साधन नहीं मिलेगा, संगीत की उन्नति नहीं हो सकती।

कोई कलाकार कैसे जीए?
इस प्रश्न के उत्तर में कलापिनी कोमकली ने कहा कि किसी भी कलाकार को ऐसे कद्रदान चाहिए जो उसकी कला को परखें और फिर उसे सम्मान दें। आज चाहे संगीत हो या फिर चित्रकारी, आमजन मानस तक पहुंच चुकी है। हां, ये बात अलग है कि छोटे शहरों में अभी भी शास्त्रीय संगीत का आयोजन कम हो रहा है, लेकिन बड़े शहरों में इनकी संख्या बढ़ी है। आज हजारों ऐसे कलाकार हैं जो फ्रीलांस के जरिए अपना जीवन यापन कर रहे हैं। ऐसा इसलिए कि यह अब जनमानस तक पहुंच चुका है।
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हिमांशु शेखर

17 वर्षों से पत्रकारिता का सफर जारी। प्रिंट मीडिया में दैनिक भास्कर (लुधियाना), अमर उजाला (जम्मू-कश्मीर), राजस्थान पत्रिका (जयपुर), दैनिक जागरण (पानीपत-हिसार) और दैनिक भास्कर (पटना) में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में कार्य करने के बाद पिछले एक साल से newsvistabih.com के साथ डिजिटल पत्रकारिता।
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