बेगूसराय। 23 सितम्बर 2024 को गणेशदत्त महाविद्यालय बेगूसराय में दिनकर जयंती महोत्सव महोत्सव के तहत एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसका विषय समसामयिक भारतीय जीवन और दिनकर था। कार्यक्रम का शुभारंभ दिनकर जी की कविताओं के गायन एवं दिनकर जी के तैलचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर हुआ।
काव्य संग्रह प्रेम के पोस्टकार्ड का हुआ लोकार्पण
कार्यक्रम में स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग के छात्र नवीन एवं नीतिश कुमार के द्वारा भित्ती पत्रिका लालसर एवं युवा कवि रहमान के काव्य संग्रह प्रेम के पोस्टकार्ड का लोकार्पण किया गया।
दिनकर हमेशा शुद्ध कविता की खोज करते रहे
मुख्य अतिथि प्रो अरूण कमल ने कहा कि दिनकर ने अपनी रचना जनता की भाषा में लिखा, इसलिए वो आज हमारे बीच में इतने लोकप्रिय हैं । प्रो. ने कहा कि दिनकर की रचना में अनेक स्वर दिखाई पड़ते हैं । इसके साथ ही कवि छंद शैली में अपनी रचना आम जनमानस तक सुगम्य बनाया। उन्होंने कहा कि कवि का काम सत्ता का चापलूस नहीं बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व का कवि होना चाहिए। दिनकर हमेशा शुद्ध कविता की खोज करते रहे। और अपनी वक्तव्य को खत्म करते हुए कवि ने कहा कि दिनकर का सृजन एको अहम् द्वितीया नास्ति पर आधारित है यहां एको अहम् का अर्थ दिनकर के शब्दों में उन्होंने कहा एको अहम् का अर्थ सभी मनुष्य एक ही हैं और सब अपने साथ आलिंगन में खड़े हैं।
दिनकर की रचना आर्थिक कदाचार पर आघात करती है
आमंत्रित वक्ता तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पूर्व मानविकी संकायाध्यक्ष व हिन्दी साहित्य के आलोचक प्रो. बहादुर मिश्र ने दिनकर से भागलपुर की जुड़ी यादों को श्रोताओं के मानसिक पटल पर उकेरा। प्रो.मिश्र ने दिनकर की रचना का राजनीतिक महत्व पर विशेष प्रकाश डाला । विशेष रूप से रश्मिरथी व परशुराम की प्रतीक्षा की पंक्तियों की चर्चा करते हुए उस समय के राजनैतिक स्थिति की चर्चा की। उन्होंने कहा कि दिनकर की रचना आर्थिक कदाचार पर आघात करती है । दिनकर न तो हिन्दुस्तानी में लिखते थे और न ही हिन्दी में दिनकर जनता की भाषा लिखते हैं।
दिनकर की वैचारिकता में विश्व शांति का समाधान निकलता है
अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रो. कमलेश ने कहा कि दिनकर के व्यक्तित्व में अपनी एक अलग धार है। दिनकर का व्यक्तित्व फौलादी कवि का है। दिनकर की वैचारिकता में विश्व शांति का समाधान निकलता है।
दिनकर अपने समय के सूर्य हैं
बीज वक्तव्य देते हुए महाविद्यालय के लोकप्रिय शिक्षक डॉ. अभिषेक कुंदन ने कहा कि दिनकर का मूल्यांकन भारत के स्तर पर होनी चाहिए । दिनकर को समझने के लिए दिनकर के समाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समाज को समझने की आवश्यकता है । दिनकर की कविताओं में आजादी के सुर दिखाई पड़ती है। महाविद्यालय के प्रधानाध्यापक प्रो . राम अवधेश ने कहा कि दिनकर अपने समय के सूर्य हैं और उनके प्रकाश में सम्पूर्ण आर्यावर्त आलोकित करता रहा है।
दिनकर विश्व मानवतावाद के कवि
राष्ट्रीय संगोष्ठी के वक्ता के रूप में हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राजेन्द्र साह ने कहा कि दिनकर किसी वाद के कवि नहीं हैं दिनकर अगर विरोध के कवि हैं तो प्रेम के भी। अगर गांधीवाद के कवि हैं तो मार्क्सवाद के भी । अगर अगर दिनकर राष्ट्र के कवि हैं तो विश्वमानवता के भी कवि हैं। अंत में भाषण व कविता प्रतियोगिता में सफल बच्चों को अतिथियों के द्वारा सम्मानित किया गया। मंच संचालन करते हुए डॉ अरमान आनंद ने कहा कि दिनकर की रचनाओं की ऊर्जा में एक सकारात्मकता है, जो युवा समाज का पथ प्रदर्शित करती है। दिनकर सर्वाधिक पढ़े जाने वाले कवि हैं। वहीं डॉ रविकांत आनंद ने कहा दिनकर की रश्मिरथी और उर्वशी मेरी प्रिय रचना है। धन्यवाद ज्ञापन में हिन्दी विभाग की प्राध्यापिका डॉ. श्रवसुमी कुमारी ने दिनकर की रचनाओं की चर्चा करते हुए वर्तमान समय में उनकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।
