बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की घंटी कभी भी बज सकती है, ऐसे में सभी दल के नेता पार्टी नेतृत्व के समक्ष अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। पार्टियां भी इन दावेदािरयों के बीच रैली, कार्यकर्ता सम्मेलन, यात्रा कर रही है और कार्यकर्ताओं को संदेश दे रही है कि सबकुछ ठीक है, लेकिन बेगूसराय भाजपा में ऐसा नहीं है। बेगूसराय भाजपा में अलग ही खिचड़ी पक रही है। इसकी हांडी मार्च 2025 में होली के समय ही चढ़ गई थी। अब यह खिचड़ी कब तक पकेगी और इसे कौन खाएगा यह तो समय ही बताएगा।
पहली बार होली मिलन में दिखी गुटबाजी : भाजपा कार्यकर्ताओं ने 14 मार्च को रजौड़ा के स्तुति उत्सव महल में होली मिलन समारोह आयोजित किया था। समारोह में खेल मंत्री सुरेंद्र मेहता, पूर्व एमएलसी रजनीश कुमार, पूर्व विधायक प्रत्याशी अमरेन्द्र कुमार अमर, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष संजय सिंह आदि शामिल हुए थे। जबकि विधायक कुंदन कुमार इस होली मिलन समारोह में नहीं दिखे थे। यह गुटबंदी 9 फरवरी को विनोद तावड़े के समक्ष विधायक कुंदन कुमार की शिकायत की परिणति थी।

अब पीएम माेदी के जन्मोत्सव पखवाड़ा में भी अलगाव : भाजपा कार्यकर्ताओं ने 19 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी का जन्मोत्सव पखवाड़ा मनाया। जन्मोत्सव मनाने का केंद्र बिंदु भी रजौड़ा का स्तुति विवाह भवन सभागार ही था। इस कार्यक्रम में विधायक कुंदन कुमार और खेल मंत्री सुरेंद्र मेहता की उपस्थिति नहीं थी। कार्यक्रम में रजनीश कुमार, अमरेन्द्र कुमार, पूर्व जिलाध्यक्ष संजय सिंह, पूर्व जिलाध्यक्ष राजकिशोर सिंह, डिप्टी मेयर अनिता राय और पूर्व मेयर संजय सिंह (जदयू) शामिल थे। चर्चा यहां तक है कि जन्मोत्सव बहाना मात्र था। दरअसल, ये लोग पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के फैसलों से विक्षुब्ध हैं। पार्टी में इतना समय देने के बावजूद इन लोगों को विधायक प्रत्याशी बनाना तो दूर किसी आयोग या समिति का अध्यक्ष तक नहीं बनाया गया।

विधायक कुंदन से नाराज हैं पार्टी वर्कर : बेगूसराय विधानसभा क्षेत्र से कुंदन कुमार विधायक हैं। केंद्रीय मंत्री सह स्थानीय सांसद गिरिराज सिंह से रिश्तेदारी भी बताते हैं। 2020 में पहली बार विधायक बने। सीटिंग विधायक और गिरिराज सिंह के करीबी होने के कारण टिकट मिलना पक्का है, लेकिन इनके खिलाफ कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। कार्यकर्ताओं ने यह नाराजगी 9 फरवरी को विनाेद तावड़े के सामने एक लंबी-चौड़ी शिकायत लिस्ट देकर जाहिर की थी। विनाेद तावड़े ने जिस होटल में कार्यकर्ताओं संग बैठक की थी वह भाजपा नेता सह पूर्व एमएलसी रजनीश कुमार का है।
अन्य दलों की अपेक्षा भाजपा में मारामारी ज्यादा : टिकट पाने और चुनाव लड़ने की मारामारी अन्य दलों की अपेक्षा भाजपा में सबसे ज्यादा है। भाजपा के कई कार्यकर्ता ऐसे हैं जो दो-दो विधानसभा क्षेत्रों से नजर गड़ाए हैं। अगर इन्हें टिकट नहीं मिला तो बगावत निश्चित है। जिन विधानसभा क्षेत्रों में बगावत के सुर उठ सकते हैं उनमें बेगूसराय, तेघड़ा, बछवाड़ा प्रमुख हैं।
अमरेन्द्र अमर की नजर बेगूसराय और तेघड़ा पर : अमरेन्द्र कुमार अमर भगवानपुर प्रखंड के पासोपुर गांव के रहने वाले हैं। और भगवानपुर प्रखंड बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में आता है। अमरेन्द्र अमर सांसद गिरिराज सिंह के प्रतिनिधि रह चुके हैं। वे पिछले कुछ महीनों से प्रशासन की कार्यप्रणाली के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। उनकी इच्छा बेगूसराय और तेघड़ा से चुनाव लड़ने की है। अगर पार्टी उन्हें बछवाड़ा से टिकट देती है तो वो शायद ही मना करेंगे। क्योंकि अमरेन्द्र अमर 2005 में बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन बछवाड़ा में उन्हें वर्करों के विरोध का सामना करना पड़ेगा। यहां से खेल मंत्री सुरेंद्र मेहता के अलावा सांसद प्रतिनिधि प्रभाकर राय, पूर्व सांसद स्व. भाेला सिंह की पतोहू वंदना सिंह, बलराम सिंह, बाशुकी शर्मा भी दावेदारी दे रहे हैं।
#हैप्पी_होली
भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा बेगूसराय के रजौड़ा में आयोजित होली मिलन समारोह में जिले भर के नेता, कार्यकर्ता आयें। कार्यकर्ताओं की एकजुटता का प्रतीक ।@bhikhubhaidbjp @BJP4Bihar @DilipJaiswalBJP @samrat4bjp @girirajsinghbjp pic.twitter.com/uHNTqvnE6m— Amrendra Kumar Amar (@amrendrabgsbjp) March 14, 2025
बेगूसराय या तेघड़ा से चुनाव लड़ेंगे रजनीश कुमार : पूर्व विधान पार्षद रजनीश कुमार, अपने ससुर स्व. रतन सिंह के बूते स्थानीय जन प्रतिनिधिय वाले कोटे से विधान पार्षद बने थे। रजनीश कुमार का गांव भगवानपुर प्रखंड का मेहदौली है। यह गांव बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में आता है। यहां का चुनाव परिणाम जातिगत रहा है। ग्रामीण होने के बावजूद इस विधानसभा क्षेत्र में उनके पैर कितने जमे हैं वे अच्छे से जानते हैं। रजनीश स्थानीय जन प्रतिनिधि वाले कोटे से विधान पार्षद चुने गए थे, लेकिन गिरिराज सिंह से नाराजगी भारी पड़ने के कारण 2022 में चुनाव हार गए। इस हार की कसक मन में है। इसलिए पूरी ताकत लगा रखी है कि बेगूसराय से टिकट मिल जाए। टिकट मिलने से सांप भले ही मर जाएगा, लेकिन लाठी तो टूट ही जाएगी। ऐसे में हार का खतरा सिर पर मंडराता रहेगा। हालांकि यहां से टिकट हासिल करने के लिए उन्हें केशव शांडिल्य, हेमंत शर्मा को पीछे छोड़ना होगा। भाजपा नेता केशव शांडिल्य इस क्षेत्र में पूरी तरह से सक्रिय हैं और टिकट नहीं मिलने की स्थिति में वे निर्दलीय भी उतर जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं।
भाग्य भरोसे हैं खेल मंत्री सुरेंद्र मेहता : खेल मंत्री सुरेंद्र मेहता बछवाड़ा से विधायक हैं। इनकी नैया घाट-घाट पर ठहरती रही है। वर्ष 2010 में बेगूसराय से विधायक बने। 2015 में कांग्रेस की अमिता भूषण से हार गए। 2020 में बछवाड़ा से चुनाव जीता। खेल मंत्री होने के बावजूद विधानसभा क्षेत्र में कोई ऐसा काम नहीं किया जिसे वो खुद या फिर जनता गिना सके। सांसद प्रतिनिधि प्रभाकर राय भी जोर लगा रहे। क्षेत्र में उनकी गतिविधि काफी समय से है। लोगों से मेल मिलाप भी विधायक से ज्यादा है। बाशुकी शर्मा भी अपना खेमा मजबूत करने में जुटे हैं। ऐसे अगर सुरेंद्र मेहता का पत्ता बछवाड़ा से कटा तो पता नहीं गोटी कहां फिट बैठेगी। सवाल यह भी कि फिट बैठेगी भी या नहीं? हालांकि वे इस आत्मविश्वास में हैं कि जाति विशेष होने के कारण पार्टी के पास उनका कोई विकल्प नहीं दिख रहा।
… तो विक्षुब्ध भाजपाई पॉलिटिकल DNA बदलेंगे?
पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष संजय कुमार, संजय सिंह, राजकिशोर सिंह और डिप्टी मेयर अनिता राय करीब 4 दशक से पार्टी की सेवा करते आ रहे हैं। ऐसे जमीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार करना इस बार पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। क्योंकि जन सुराज ऐसे ही नेताओं पर नजर गड़ाए है जो लोगों के बीच लोकप्रिय हों और वह उन्हें ऑफर करे तो सहजता से स्वीकार कर लें। अगर ये नेता भाजपाई पॉलिटिकल DNA बदल ऑफर स्वीकार कर लेते हैं तो भले ही जीत की लॉटरी न निकले लेकिन भाजपा का जनाजा निकालने में भी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
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कोई भी दल कार्यकर्ताओं के भरोसे ही टिकाऊ बनता है। जिस पार्टी में जमीनी कार्यकर्ताओं की अनदेखी होगी उसका मिटना तय है। इतिहास गवाह रहा है इस बात का।