बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 6 नवंबर को वोट डाले गए थे। इसके बाद से इन सीटों पर जीत-हार को लेकर कयासों का दाैर शुरू है। महागठबंधन और एनडीए के समर्थक अपने-अपने दावे कर रहे हैं, लेकिन इसके अलावा भी विश्लेषकों का अपना मत है। असली खुलासा तो 14 नवंबर को होगा। बेगूसराय जिले के सात सीटों में साहेबपुरकमाल व तेघड़ा विधानसभा क्षेत्र की तस्वीर साफ दिखाई दे रही है। साहेबपुरकमाल में राजद प्रत्याशी सतानंद संबुद्ध व तेघड़ा से भाजपा प्रत्याशी रजनीश कुमार बाजी मारते दिखाई दे रहे हैं।

बखरी : हाशिए पर गए संजय रेस में कितना आगे आए पता नहीं
बखरी क्षेत्र में महागठबंधन से CPI प्रत्याशी सूर्यकांत पासवान के समर्थकों ने जब लोकल व बाहरी का मुद्दा उछाला तो ऐसा लगता था कि NDA के लोजपा प्रत्याशी संजय पासवान हाशिए पर चले गए और सूर्यकांत पासवान को वाकओवर मिल गया हो, लेकिन मतदान के तीन दिन पहले NDA समर्थकों ने फिजां बदली और कांटे का संघर्ष हो गया। हालांकि अब भी महागठबंधन का पलड़ा भारी दिख रहा है।


बछवाड़ा : कहीं लुढ़क न जाएं खेल मंत्री
बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से CPI व कांग्रेस दोनों के चुनाव लड़ने से भाजपा प्रत्याशी सुरेंद्र मेहता की जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी, लेकिन कांग्रेस के शिवप्रकाश गरीब दास यहां बाजी पलटते दिखाई दे रहे हैं। महागठबंधन के घटक दल राजद और ई. आईपी गुप्ता के इंडियन इंक्लूसिव पार्टी के साथ ही मुकेश सहनी के वीआइपी का वोट गरीब दास के पक्ष में खड़ा नजर आया। बीते चुनाव में वे निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे और जीत से 15000 वोट से पीछे थे। इस बार गरीब दास अगर चुनाव जीतते हैं तो कोई अचरज की बात नहीं होगी।

बेगूसराय : व्यक्तिगत छवि और प्रतिष्ठा का सवाल
बात बेगूसराय सीट की करें तो यहां बहुत ही कम अंतर से चुनाव परिणाम आने का अनुमान लगाया जा रहा है। क्षेत्र की बनावट यानी जातीय समीकरण को देखें तो NDA का पलड़ा भारी दिखाई देगा। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी सबसे ज्यादा समय प्रचार में यहां लगाया है, लेकिन दुबारा चुनाव मैदान में उतरे विधायक कुंदन कुमार मतदाताओं में अपनी छाप नहीं छोड़ पाए। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी व पूर्व विधायक अमिता भूषण व्यक्तिगत छवि के आधार पर मतदाताओं को लुभाने में सफल रही हैं। इसी कारण बेगूसराय में लोग अमिता भूषण का पलड़ा भारी मान रहे हैं। बीते चुनाव में भी दोनों आमने-सामने की टक्कर में थे। अमिता भूषण पांच हजार से भी कम वोट से हार गई थीं। इस बार हिसाब-किताब बराबर होने का अनुमान है।











