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‘रंगभूमि’ उपन्यास की भाषा सरल, सजीव और हिन्दुस्तानी जुबान में लोक-प्रचलित : विनीताभ

  • जलेस द्वारा मौजूदा दौर में ‘रंगभूमि’ के यथार्थ की प्रासंगिकता’ पर संगोष्ठी आयोजित 

बेगूसराय। जनवादी लेखक संघ, जिला इकाई, बेगूसराय के द्वारा उर्दू-हिन्दी के महान रचनाकार प्रेमचंद की अमर कृति उपन्यास ‘रंगभूमि’ की रचना के सौ वर्ष पूरे होने पर स्थानीय कचहरी चौक स्थित अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के जिला कार्यालय में रविवार को संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का विषय था- ‘मौजूदा दौर में ‘रंगभूमि’ के यथार्थ की प्रासंगिकता’। इसकी अध्यक्षता संगठन के जिला-अध्यक्ष और ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र साह ने की, जबकि जिला सचिव राजेश कुमार ने संचालन किया। उपाध्यक्ष डॉ. चन्द्रशेखर चौरसिया ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि प्रेमचंद की कालजयी कृति ‘रंगभूमि’ आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी अपने रचनाकाल में थी। युवा आलोचक डॉ. निरंजन कुमार ने कहा कि ‘रंगभूमि’ उपन्यास का केन्द्रीय यथार्थ- साम्राज्यवादी शोषण, पूंजीवाद के विस्तार, ग्रामीण जीवन के संकट और सामान्य जन के संघर्ष-आज के भारत में नये रूपों में मौजूद है। जनवादी लेखक संघ के राज्य सचिव कुमार विनीताभ ने कहा कि ‘रंगभूमि’ उपन्यास की भाषा सरल, सजीव और हिन्दुस्तानी जुबान में लोक-प्रचलित है। प्रेमचंद ने ऐसी भाषा का प्रयोग किया है जो आम जनता, विशेषकर ग्रामीण लोगों की बोलचाल की सहज भाषा है।

‘रंगभूमि’ उपन्यास में प्रेमचंद ने भारत की राजनीतिक और आर्थिक दोनों समस्याओं को एक साथ उठाया : डॉ. अभिषेक कुन्दन

स्थानीय गणेश दत्त महाविद्यालय के हिन्दी प्राध्यापक डॉ. अभिषेक कुन्दन ने कहा कि ‘रंगभूमि’ उपन्यास में प्रेमचंद ने भारत की राजनीतिक और आर्थिक दोनों समस्याओं को एक साथ उठाया है। इन समस्याओं का समाधान उन्होंने नहीं दिया है, किन्तु पूरे कथानक के अध्ययन से स्पष्ट है कि भारत जरूर जीतेगा और इसके लिए संगठित होकर आजादी की लड़ाई लड़नी होगी। उन्होंने आगे कहा कि आज सत्ता का पूंजीवाद के साथ मजबूत गठजोड़ से क्रोनीकैपिटलिज्म का तेजी से विकास हो रहा है। सामंतवाद और पूंजीवाद के अंतर्संबंध से मेहनतकश जनता शोषण की जंजीर में जकड़ती जा रही है। ऐसी परिस्थिति में किसानों और मजदूरों की एकताबद्ध लड़ाई ही एकमात्र विकल्प है। 

प्रेमचंद का उपन्यास ‘रंगभूमि’ गाँधीवादी दर्शन से प्रेरित : डॉ. राजेन्द्र साह

अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. राजेन्द्र साह ने कहा कि प्रेमचंद का उपन्यास ‘रंगभूमि’ गाँधीवादी दर्शन से प्रेरित है। इसमें एक अंधे भिखारी सूरदास के संघर्ष की कहानी है, जो अपने गाँव की जमीन पर सिगरेट का कारखाना लगाने के पूंजीपति जॉन सेवक के मंसूबों का अहिंसक प्रतिरोध करता है। इस प्रतिरोध में औद्योगीकरण, शोषण, धर्म, नैतिकता और साम्राज्यवाद के खिलाफ आम आदमी की लड़ाई को दर्शाया गया है। आज के शासक वर्ग की जन विरोधी नीतियों के विरुद्ध संघर्ष में यह उपन्यास प्रेरणा देता है। प्रभा कुमारी, अवध बिहारी, दीपक कुमार, मो. सुहैल, संतोष अनुराग समेत उपस्थित अन्य वक्ताओं ने विषय केन्द्रित वक्तव्य से आज के संदर्भ में ‘रंगभूमि’ को प्रासंगिक बताया। जी. डी. कॉलेज के अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. जिक्रुल्लाह खान ने ‘रंगभूमि’ के कथानक का औचित्य बताते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया। 

 

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प्रवीण प्रियदर्शी

1998 से पत्रकारिता का सफर जारी। हिंदी मासिक पत्रिका ‘दूसरा मत’ से लिखने की शुरुआत। राष्ट्रीय जनमुक्ति पत्रिका का संपादन। दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम के लिए स्क्रिप्ट राइटिंग। दैनिक अखबार हिंदुस्तान, दैनिक हरिभूमि (हरियाणा), प्रभात खबर और दैनिक भास्कर में पत्रकारिता की।
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