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बारिश/बाढ़ : जश्न मनाइए, अभी नदियों की गोद भराई का समय है!

बारिश का मौसम है। नदियों में पानी का प्रवाह तेज है। यह समय नदियों के गर्भ को भरने का है। मगर नदियों के गर्भ में गाद जमी है। नदी के उथली होने से बाढ़ आई है।

शीर्षक पढ़कर आप हैरान हो रहे होंगे। आपको अटपटा भी लग रहा होगा। एक तो नदी और दूसरी उसकी गोद भराई! उसमें भी इस बारिश या बाढ़ के समय। जी हां, आपका सोचना भी सही है कि गोद भराई तो स्त्रियों की होती है, भला नदी की गोद भराई कैसे? चलिए, आपको विषय वस्तु की ओर ले चलता हूं। नदियां पवित्र होती हैं। नदियों को ‘मां’ कहते हैं। इस नाते वह स्त्री हुई। अब बात रही गोद भराई की तो एक स्त्री बच्चे को जन्म देती है और नदी जलीय जीव-जंतु को नवजीवन देने के साथ ही हमारे खेतों को उपजाऊ बनाती है। खेत से उपजे अन्न हमारे पेट को भरते हैं। खेत तभी उपजाऊ बनेंगे या जलीय जीव-जंतु को नवजीवन तभी मिलेगा जब नदियों का गर्भ पानी से भरा रहे। नदियां प्रवाहमान बनीं रहें। इसलिए जब बारिश होती है तो नदियों का गर्भ भरता है।

हिन्दी महीने के अनुसार, अभी आश्विन मास चल रहा है। मतलब सातवां महीना। एक गर्भवती महिला की गोद भराई भी छठे-सातवें महीने में होती है। गोद भराई का अर्थ है ‘गोद को प्रचुरता से भरना’। यह लोकाचार है, जिसमें आने वाले बच्चे और गर्भवती को आशीष दिए जाते हैं। इसी तरह प्रकृति भी बारिश कर नदियों के गर्भ को भरती है और भूमि को उपजाऊ बनाने का आशीष देती है, लेकिन नदियों का गर्भ इस तरह से भरा (गाद से) है कि बारिश होने पर इसका पानी इस गति से अपनी लक्ष्मण रेखा को पार कर जाता है कि बाढ़ आ जाती है। बारिश के मौसम में हमें जल प्रवाह बढ़ाने की जगह इनके संचयन पर जोर देना होगा। नदियों में ही जल संचय होगा तो निश्चित रूप से प्रलंयकारी बाढ़ नहीं आएगी।

नदी के गर्भ में जमी गाद अब वरदान से ज्यादा अभिशाप बनी
दशकों पूर्व नदियों पर तटबंध नहीं होते थे। जब बाढ़ आती थी तो पानी इलाके में फैलता हुआ कुछ दिनों के बाद ही उतर जाता था। पानी उतरने के बाद मैदानी इलाकों में गाद की महीन परत जमी रहती थी। गाद उर्वरक का काम करती थी। इस पर अंग्रेज इंजीनियर विलकॉक्स ने काफी अध्ययन किया था। उनका मानना था कि प्राचीन काल के लोग नदियों की बाढ़ को खेतों में ले जाने का इंतजाम करते थे। गंगा में पटना नहर या बक्सर, मुंगेर आदि जगहों पर बाढ़ का पानी खेत में ले जाने की व्यवस्था के अवशेष पाए गए हैं, लेकिन अब नदियों को तटबंधों से बांध दिया गया है। ऐसे में गाद नदी के पेट में ही जमा हो रही और नदी उथली होती जाती है। पानी का अधिक दबाव होने पर तटबंध टूटते हैं और बाढ़ आ जाती है। जब यह पानी उतरता है तो मोटे बालू की परत खेतों में रह जाती है जो फसल के लिए हानिकारक है।

दियारा क्षेत्र का हो रहा विस्तार, बाढ़ की स्थिति और भयावह होगी
दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि गंगा के दियारा क्षेत्र में काफी विस्तार हुआ है। 1975 से लेकर 2014 तक के आंकड़ों में दियारा क्षेत्र के क्षेत्रफल में तेजी से विस्तार दिखता है। मतलब जल बहाव वाले इलाके में भारी कमी आई है। गंगा के बहाव मार्ग में भी काफी बदलाव हुआ है। विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के डॉ. प्रधान पार्थसारथी कहते हैं कि पटना के आसपास दियारा क्षेत्र में जमी रेत और तटीय इलाकों में हो रहे बदलाव की वजह से आगामी दिनों में बाढ़ की स्थिति और भयावह होती जाएगी।

पानी के साथ गाद आने की समस्या कोई नई नहीं, व्यवस्था हमने तोड़ी
नदियों में पानी के साथ गाद आने की समस्या नई नहीं है। बिहार, बंगाल और आसाम सदियों से इसे झेलते रहे हैं। वनों की कटाई से  भी समस्या बढ़ी है। समस्या केवल पहाड़ों पर वनों की कटाई से ही नहीं बल्कि मैदानी क्षेत्र में वृक्षों के विनाश का असर पड़ा है। इन राज्यों में गाद को व्यवस्थित करने की प्रकृति सम्मत व्यवस्था थी। तटबंधों के निर्माण ने वह व्यवस्था तोड़ दी। व्यवस्था के टूट जाने से गाद की समस्या विकराल होती गई है।

नदी की सामान्य गहराई काफी घटी
नदी विशेषज्ञ कल्याण रुद्र कहते हैं, “बाढ़ से पूरी तरह मुक्ति वांछनीय नहीं है।” जरूरत है बाढ़ के पानी को नदी किनारे निचले इलाकों और झीलों में रोक कर रखने की और जरूरत पड़ने पर इन झीलों और तालाबों से गाद निकाली जा सकती है। पर बिहार में गंगा की सहायक नदियों के किनारे बने तटबंधों का जाल सा बिछा हुआ है, जो गाद को विस्तृत क्षेत्र में फैलने से रोकता है। परिणामस्वरूप गाद नदियों के तल में जम रही है और नदियों का तल ऊपर उठ रहा है। नतीजा यह है कि पिछले छह दशकों में बिहार का बाढ़ क्षेत्र तिगुना हो गया है।

गाद ज्यादा पैदा होने का एक कारण यह भी
डॉल्फिन विशेषज्ञ और राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण के विशेषज्ञ सदस्य रह चुके रविन्द्र कुमार सिन्हा का भी मानना है कि मध्य और पूर्वी हिमालय में जंगलों के कटने से वहां से निकलने वाली बिहार की नदियों में गाद बढ़ी है। 80 के दशक तक गंगा के बाढ़ क्षेत्र में प्राकृतिक वनस्पति दिखाई देती थी जो अब खत्म हो गई है। वहां अब खेती हो रही है। 90 के दशक में बिल्डिंग बूम आया और जगह-जगह ईंट के भट्टे नदी किनारे बना दिए गए। रेत का खनन होने लगा। इन सब का मिला-जुला असर है कि गाद ज्यादा पैदा हो रही है।

गंगा नदी के बीच में बड़े-बड़े टापू उभर आए हैं

बेगूसराय के सिमरिया में गंगा नदी के बीच बना टापू। फाइल फोटो

बिहार में गंगा का प्रवेश पश्चिम दिशा में बक्सर से है। यह पटना, बेगूसराय, मुंगेर होते हुए भागलपुर तक 445 किलोमीटर की दूरी करने के बाद झारखंड में प्रवेश कर जाती है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के प्रोफेसर राजीव सिन्हा के अनुसार, गंगा में गाद का जमाव सचमुच में बहुत ज्यादा है। प्रो. सिन्हा गंगा में गाद की समस्या का अध्ययन करने के लिए बिहार सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ दल के सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने बताया कि बिहार में प्रवेश करने के बाद गंगा 10- 12 किलोमीटर चौड़े इलाके में फैल जाती है। नदी के बीच में बड़े-बड़े स्थायी टापू बन गए हैं।

1950 में ही दी थी चेतावनी : बरौनी, मुंगेर, पटना, भागलपुर हर साल पानी में डूबेंगे
1950 में पश्चिम बंगाल के इंजीनियर कपिल भट्टाचार्य ने चेतावनी दी थी कि फरक्का बैराज के कारण बंगाल के मालदा व मुर्शीदाबाद के साथ बिहार के पटना, बरौनी, मुंगेर, भागलपुर और पूर्णिया हर साल पानी में डूबेंगे। उनका तर्क था कि फरक्का बैराज से पैदा हुई रुकावट के कारण गंगा की गति धीमी हो जाएगी। पानी में बहकर आया गाद गंगा के तल में बैठ जाएगा। जैसे-जैसे गंगा उथली होगी, वैसे-वैसे उसका बाढ़ का प्रभाव क्षेत्र बढ़ेगा। 2016 में बिहार में पिछले दशक की सबसे बड़ी बाढ़ आई। पटना जिले में गांधीघाट और हाथीदह और भागलपुर में गंगा के जलस्तर के रिकॉर्ड टूट गए। लगभग 250 जानें गईं और 31 जिले प्रभावित हुए थे।

क्या कह चुके हैं मुख्मंत्री नीतीश कुमार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण की पहली बैठक 2009 में ही गंगा नदी के तल में भारी मात्रा में गाद जमा होने का मामला उठाया था। कहा था कि गंगा उथली हो गई है और पानी को निकास देने में पहले जैसी समर्थ नहीं है। जब तक गंगा में जमी गाद को नहीं निकाला जाएगा तब तक बिहार में हर साल आने वाली बाढ़ का सिलसिला नहीं थमेगा। उन्होंने बाद में अन्तरराज्यीय परिषद और पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में भी इस मामला को उठाते हुए राष्ट्रीय गाद प्रबंधन नीति बनाने की मांग की थी। 2012 में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री ने चौसा से फरक्का तक गंगा का हवाई सर्वे किया, लेकिन अभी तक ठोस रूप से कुछ नहीं हुआ है।

गाद से निपटने का एक प्रयोग यह भी
गाद को निपटाने के बारे में कुसहा त्रासदी के बाद कोसी क्षेत्र में एक प्रयोग चल रहा है। प्रयोग खेतों में एकत्र गाद से बर्तन, टाइल्स आदि बनाने के बारे में है। लेकिन ऐसा प्रयोग गंगा में संभव है? नदी के गाद से निपटने की एक व्यवस्था मिट्टी के बर्तन बनाना भी था। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार आमतौर पर नदियों की मिट्टी का उपयोग ही करते थे।

जल संचय कैसे हो यह तो सोचना ही होगा : गाद उड़ाही के अलावा और विकल्प तलाशने होंगे


वर्षा ऋतु में राजस्थान की नदियों को छोड़कर बाकी हर नदी में पर्याप्त पानी बहता है इसलिए वर्षा ऋतु में प्रवाह बढ़ाने के प्रयासों की जरूरत नहीं है। इस अवधि में केवल जल संचय के तरीकों के बारे में सोचने और प्रयास किए जाने की जरूरत है। गाद जमने से नदियों की गहराई घटती ही जा रही है। गाद की सफाई जरूरी है, लेकिन एक व्यवस्थित तरीके से। गाद हटने के साथ ही नदियों की गहराई खुद ब खुद बढ़ जाएगी। गहराई बढ़ने के साथ ही नदियों में अधिक से अधिक जल संचय होगा। कुछ वर्ष पूर्व गंगा नदी में गाद उड़ाही का काम शुरू हुआ था, लेकिन वह भी कुछ समय बाद बंद हो गया। नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत भी कुछ खास काम नहीं हो सका है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नदी जोड़ो परियोजना की शुरुआत की थी, लेकिन वह भी अब ठंडे बस्ते में है। अगर नदियों को जोड़ दिया जाए सभी नदियों में साल भर पानी रहेगा। जो सिंचाई का बड़ा साधन बन सकती हैं।

Picture of हिमांशु शेखर

हिमांशु शेखर

17 वर्षों से पत्रकारिता का सफर जारी। प्रिंट मीडिया में दैनिक भास्कर (लुधियाना), अमर उजाला (जम्मू-कश्मीर), राजस्थान पत्रिका (जयपुर), दैनिक जागरण (पानीपत-हिसार) और दैनिक भास्कर (पटना) में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में कार्य करने के बाद पिछले एक साल से newsvistabih.com के साथ डिजिटल पत्रकारिता।
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Ranjan kumar
Ranjan kumar
11 months ago

संकलित रखने और संदर्भ के रूप में रेखांकित करने योग्य शोधपरक आलेख । यथार्थ ही है कि अपनी सुविधाओं के लिए यांत्रिक उपलब्धियों को विकास मानकर, हमारे द्वारा प्रकृति की पारस्थितिकी पर जो लगातार दबाव बढ़ाया जा रहा है, इससे नदियों का प्राकृतिक स्वरूप अस्त व्यस्त हो गया है तथा यह जीवनदायिनी बने रहने के बजाए विध्वंसक होती जा रहीं हैं ।

अमित कुमार सिन्हा
अमित कुमार सिन्हा
11 months ago

आपकी रिपोर्ट बहुत शानदार है। जिस तरह से आपने संवेदनशील मुद्दे को गहराई से समझाया और तथ्यों को सटीक ढंग से प्रस्तुत किया, वह काबिले तारीफ है। यह लेख हमें इस विषय पर एक नया दृष्टिकोण देता है। बाढ़ आने के बाद के उपायों के अलावा प्रशासन एवं सरकार को बाढ़ के कारण की समीक्षा और सुधारात्मक उपायों पर काम करना होगा।नदी की जल धारण क्षमता ,बांधों की स्थिति एवं जल प्रबंधन पर ध्यान दिया जाए ,समस्या अपने आप सुलझने लगेगी।आपने जिस प्रकार से जल प्रबंधन की कमी और बाढ़ पूर्व तैयारी की खामियों पर प्रकाश डाला है, उससे हम जैसे पाठकों को काफी जानकारी मिली है। ऐसी गहन और तथ्यात्मक रिपोर्टिंग की हमेशा जरूरत है। उम्मीद है कि आप आगे भी इसी तरह की महत्वपूर्ण जानकारी हमारे साथ साझा करते रहेंगे।

लक्ष्मी नारायण यादव
लक्ष्मी नारायण यादव
11 months ago

बहुत ही शानदार लेख है। प्रकृति और पारिस्थितिक तंत्र से जो आधुनिकता की होड़ में छेड़छाड़ की जा रही है वह चिंतनीय है। आपने इस खबर के माध्यम से सरकार तक यह बात पहुंचाई है की प्रकृति अपने आप में अथाह है। जीवन दायिनी नदियों का अस्तित्व खतरे में है। गोद भराई रस्म से पार नहीं पड़ेगी, इसके आगे की रस्में भी निभानी पड़ेगी।।।
बहुत शानदार, जानदार और दमदार कॉलम भाईसाहब

Sunil sharma
Sunil sharma
11 months ago

शानदार लिखा है भाई। शुभकामनाएं

Pravin
Pravin
11 months ago

बहुत सुंदर। आपकी कलम में बहुत धार है। अतिसंवेदनशील विषय को आपने बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है। बहुत ही शानदार लेखनी के धनी हो आप। आप जैसा गुरु पाकर मैं धन्य हूँ।
सादर
प्रवीण मुदगल
दैनिक भास्कर

Dishant Kumar
Dishant Kumar
11 months ago

Very informative.

राजेश्वर राय
राजेश्वर राय
11 months ago

विज्ञान से संबंधित तथ्यों का साहित्यक ढंग से प्रस्तुतिकरण का एक अनूठा और सराहनीय प्रयोग.
रपट का सपाट कलेवर उसे नीरस एवं बोझिल बनाता,किंतु इसका साहित्यक शिल्प व आंचलिक शब्दावली इसे दिलचस्प तथा पठनीय बना दिया.

रोहित कुमार सिंह
रोहित कुमार सिंह
11 months ago

नदियों में गाद की समस्या को तथ्यों के साथ बताया जाना रिपोर्ट को शानदार बनाती है। बाढ़ तो रूटीन है। लेकिन, बाढ़ क्यों आ रही है, इस सवाल का उत्तर कहीं नहीं मिलता है। बेहतर जानकारी के साथ अच्छी रिपोर्ट

Jeetendra kumar
Jeetendra kumar
11 months ago

Bahut khub.Itni gahrai ki baat hame lagta hai bahut kam logon ko pata hai. Himanshu ji aap logon ko jagaruk kar rahe hain.Bahut achha kaam kar rahe hai

Shiv Prakash Bhardwaj
Shiv Prakash Bhardwaj
11 months ago

नदी की गोद भराई अब मानव जीवन के लिए मुश्किलें पैदा कर रही है।मानव निर्मित इस समस्या पर आपने अच्छे तरीके से तथ्यों को रखा है। गाद को हटाने के लिए अविलंब व्यवस्था करने की जरूरत है। बाज़ार में तकनीक मौजूद है।

shyam nandan kumar
shyam nandan kumar
11 months ago

शानदार, कंटेंट युक्त और ज्ञानवर्धक आलेख। आपकी मेहनत ने इसे संग्रहणीय बना दिया है। धन्यवाद
श्याम नंदन कुमार

Manikant Mayank
Manikant Mayank
11 months ago

समस्या से समाधान तक सही चित्रण किया है आपने। कथ्य के साथ मजबूत तथ्य आलेख को आधार देता है। आपका सद् प्रयास संवेदनशील है। शुभकामनाएं…।
यशस्वी भव।

Sanjay Jha
Sanjay Jha
11 months ago

Indepth aur comprehensive details aur experts view ke saath yeh bahut hein satik aur saarthak report hey. Heading aur siltation per jaankari viewer ko attract karta hey. Behtar hota agar eske ek prati namami gangey project ke adhikariyon ko bhej diya jaata.

Rakesh Gandhi
Rakesh Gandhi
11 months ago

भाई हिमांशु, बेहद उम्दा विषय चुना आपने। नदी पूजन जैसी परम्परा को नई पीढ़ी को समझना चाहिए। ऐसे कई रीतिरिवाज हैं, जो धीरे धीरे खत्म होते जा रहे हैं। ऐसे में यदि गांव- कस्बों में इस तरह के परम्परागत रीति रिवाज का पालन होता है, तो बिल्कुल इसी तरह नई पीढ़ी के समक्ष लाते रहना चाहिए।
Keep it up dear

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