Search
Close this search box.
Search
Close this search box.

Download App from

unsung lady warrior : बहुरा मामा

बखरी में आज भी बहुरा मामा की कहानी से संबंधित ऐतिहासिक पुरावशेष यथा चौघटिया इनार और ठूठी पाकड़ (बरगद) कहानी की सत्यता को सिद्ध करने के लिए काफी है।

बहुरा मामा के कद्दावर छवि को देखते हुए समझ में नहीं आता है कि बहुरा मामा की कहानी कहां से शुरू करूं? प्राचीन काल की कई दंत कथाएं पूरे देश में आज भी प्रचलित हैं। उनमें से एक प्रसिद्ध तंत्र कथा बिहार के बेगूसराय जिले के बखरी से संबंधित प्रसिद्ध तंत्र साधिका बहुरा गोढ़िन की कहानी है। बखरी में आज भी बहुरा मामा की कहानी से संबंधित ऐतिहासिक पुरावशेष यथा चौघटिया इनार और ठूठी पाकड़ (बरगद) कहानी की सत्यता को सिद्ध करने के लिए काफी है।
कहा जाता है कि चार घाट वाले चौघटिया इनार बहुत ही विशाल कुआं था। इनमें से एक घाट पर बहुरा मामा का आधिपत्य था। वहां वह स्नान करने के साथ-साथ अपने तंत्र विद्या का प्रयोग भी करती थी। विशाल बरगद का वृक्ष ठूठी पाकड़ था जिस पर रात्रि में उस पर चढ़कर बहुरा मामा पूरे इलाके का भ्रमण करती थी। हालांकि यह लोक कथा आज के युग में दम तोड़ती नजर आ रही है। इतिहास के पन्नों में अथवा लोक कथाओं की पुस्तकों में इसे यथोचित स्थान नहीं मिल सका है। बहुरा मामा के जन्म स्थान या कर्म स्थली के रहने वाले युवा पीढ़ी तो इनका नाम भी नहीं जानते हैं। विडंबना यह है कि इस इलाके के लोग इन्हें भूलते जा रहे हैं परंतु आज भी बंगाल, ओडिशा और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में बहुरा मामा पर आधारित नृत्य नाटिका का मंचन बहुतायत होता है।

बहुरा मामा ने लड़कियों और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया
आज से लगभग 600 वर्ष पूर्व बहुरा मामा का कार्यकाल माना जाता है। बहुरा मामा की बढ़ती ताकत और तंत्र विद्या में सिद्धहस्त होने के कारण तात्कालीन सामंती प्रवृत्ति के लोगों ने इन्हें “हकल डायन” की संज्ञा तक दे डाली। यह वह जमाना था जब महिलाओं को शिक्षा से वंचित कर उन्हें घर की चहारदीवारियों के बीच पूर्ण पर्दा में रखा जाता था। पूर्ण रूप से पितृ सत्तात्मक परिवार हुआ करता था। और उस जमाने में बहुरा मामा ने कामरूप कामाख्या से तंत्र विद्या सीख कर महिलाओं को शिक्षित कर उन्हें उनके अधिकार और कर्तव्य की शिक्षा देती थी। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि बहुरा मामा अव्वल दर्जे जी की एक कुशल नृत्यांगना भी थी। अपनी तांत्रिक साधना के दम पर असाध्य बीमारियों का इलाज भी करती थी। हम कह सकते हैं कि पितृ सत्तात्मक परिवार के बीच उस समय बहुरा मामा का प्रादुर्भाव एक आश्चर्यजनक घटना थी। इसीलिए तो सामंती प्रवृत्ति के लोगों ने उनकी बढ़ती धमक को जड़ से खत्म करने के लिए अनेकों कुचक्र रचे। जबकि सच्चाई यह है कि बहुरा मामा ने अपने तंत्र विद्या का प्रयोग हमेशा सकारात्मक दिशा में किया था।


अब हम बहुरा मामा के दंत कथा की ओर बढ़ते हैं। अलग-अलग लेखको के अनुसार कहानी में भिन्नता भी पाई जाती है। बुजुर्गों के मुख से जो सुना उसे संक्षेप में कलमबद्ध करने का प्रयास कर रहा हूं :-

अपमान… तंत्र विद्या… फिर अमरावती से शादी
नटवा दयाल इस अपमान का बदला लेने के लिए काला जादू और तंत्र मंत्र सीखने के लिए बंगाल गया। वहां कुशल तंत्र साधिका (डायन) हिरिया और मीरिया से उसकी मुलाकात होती है। दोनों ने नटवा दयाल को तंत्र विद्या में पारंगत किया। कुछ वर्षों के बाद नटवा दयाल वापस घर आया और बहुरा मामा को अमरावती की शादी के लिए फिर से प्रस्ताव भेजा। बहुरा मामा तैयार नहीं हुई। अंततः दोनों के बीच घमासान युद्ध भी हुआ। अनिर्णीत रहे इस युद्ध की समाप्ति के बाद बहुरा मामा अमरावती की शादी नटवा दयाल से कर देती है।

कहावत है कि “बखरी के बकरियो डायन”
मैं तो बस इतना कहना चाहूंगा कि उस जमाने में बहुरा मामा नारी सशक्तीकरण की एक मजबूत मिसाल थी। बल्कि बहुरा मामा के बाद इस इलाके में नारी अपने अधिकारों को समझने लगी थी। कहा जाता है कि बहुरा मामा ने एक गुरुकुल चलाया था जो देशभर में तंत्र साधकों का प्रमुख केंद्र था। आज भी लोग बहुरा मामा को भगवान की तरफ पूजते हैं। महिलाओं पर अत्याचार करने वालों पर तंत्र-मंत्र का टोटका करती थी। उनके तंत्र मंत्र की प्रक्रिया से सामान्य लोग काफी डरते थे। बोहरा मामा दुर्गा जी की अनन्य भक्त थीं। इसीलिए आज भी गोरिहारी दुर्गास्थान के बगल में बोहरा मामा का मंदिर है। यहां लोग रोज पूजा-अर्चना करते हैं और मन्नत मांगते हैं। बखरी के बारे में आज भी एक कहावत प्रचलित है कि “बखरी के बकरियो डायन”।
(C)कॉपीराइट रिज़र्व

newsvistabih
Author: newsvistabih

3 thoughts on “unsung lady warrior : बहुरा मामा”

  1. उत्तम विषय का चयन.जिले(पुराने मुंगेर) के गजेटियर,अभिलेख अथवा अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों से सामग्री को प्रस्तुत किया जाता तो,यह प्रस्तुति और अधिक प्रमाणिक होता.
    चूंकि आज से छह सौ वर्ष यानी १७००-१८०० ई.संभवत: मुगल काल और ईस्ट इंडिया कंपनी के आसपास का प्रतीत होता है.
    संभव है संस्कृत,उर्दू-फारसी,कैथी अथवा तत्कालीन शासन-प्रशासन, न्याय-व्यवस्था,जमीन-जायदाद से संबंधित अभिलेख, दस्तावेजों से कुछ जानकारी छन सके.
    जिले के ऐसे धरोहरों पर खोज किया जाना और उसे लोगों तक लाना सराहनीय कार्य है.

    Reply
    • जी, पाठकों को बेगूसराय की लोक संस्‍कृत‍ि और धरोहरों से रू-ब-रू कराने की कोशिश जारी रहेगी। आपकी टिप्‍पणी हमारे लिए टॉनिक के मानिंद काम करेगी।

      Reply

Leave a Comment

Share this post:

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

  • HUF Registration Services In India
  • Digital marketing for news publishers

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: wetter in Indien morgen

राशिफल

error: Content is protected !!