- मधु कोड़ा की भाजपा में इंट्री पर अर्जुन मुंडा की चुप्पी कुछ और इशारा कर रही
- चंपाई के बाद झामुमो के लोबिन हेम्ब्रम भी ऑपरेशन लोटस के वाशिंग मशीन से धुले गए
- कांग्रेसी नेता तिर्की बंधु का खुलासा : हेमंत सरकार को अस्थिर करने के लिए उनसे संपर्क किया गया था
झारखंड का राजनीतिक माहौल कुछ चंचल सा हो रहा है। स्थानीय राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि चूंकि वर्तमान विधानसभा 5 जनवरी 2020 से प्रभावी है तो ऐसे में नवम्बर माह तक आगामी चुनाव की घोषणा की जा सकती है।
उल्लेख्य है कि गत 30 अगस्त को झामुमो के चंपाई सोरेन और उनके सुपुत्र बाबू लाल सोरेन के भाजपा में शामिल होने के अगले ही दिन झामुमो के बागी स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राजमहल संसदीय सीट से पराजित लोबिन हेम्ब्रम ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। साथ ही सजायाफ्ता पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को ‘ऑपरेशन लोटस’ के वॉशिंग मशीन से धो एवं गंगाजल से शुद्ध कराकर भगवा धारण करा दिया गया। उनकी इस इंट्री पर पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने पूरी तरह से चुप्पी साध ली है। ये वही मधु कोड़ा हैं जिनकी वजह से अर्जुन मुंडा की सीएम की कुर्सी छीनी गई थी। मुंडा की चुप्पी पार्टी का अनुशासन मानें या फिर तथाकथित चाणक्य का खौफ। मंगलवार को एक प्रेस वार्ता के दौरान कांग्रेसी नेता बंधु तिर्की ने यह खुलासा किया कि असम के मुख्यमंत्री एवं झारखंड चुनाव सह प्रभारी ने हेमंत सरकार को अस्थिर करने हेतु मोबाइल से उनसे संपर्क किया था।
झारखंड की हेमंत सरकार को अस्थिर/अपदस्थ करने हेतु कई ऑपरेशन लोटस को अंजाम दिया गया, किंतु हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पार्टी के बाहर-भीतर खींचतान व फजीहत को देखते हुए और खासकर केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिसवा सरमा के झारखंड विधानसभा चुनाव का क्रमशः प्रभारी और सह प्रभारी नियुक्त होने के उपरांत ऑपरेशन लोटस इनर्शिया से मोमेंटम मोड में आ गया। इसमें चौहान साहब का निहितार्थ संघ का आशीर्वाद पाना तो सरमा जी का चाणक्य के दुलारा नम्बर वन में शुमार होना माना जा रहा है।
इधर भाजपा से धन, बल, कल और छल में न्यूनतम, लघु झामुमो नीत इंडिया गठबंधन झारखंड में चट्टानी एकता तथा दृढ़ संकल्प व मनोबल से लबरेज दिल्ली में विपक्ष के नेता राहुल गांधी तथा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की। उधर राज्य में कांग्रेस, राजद व गठबंधन के अन्य दल भाजपा के इस दल-बदल के खेल का कांउटर कर रहे हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 की सियासी बिसात बिछने लगी है। किसी दल का प्यादा उस दल में वज़ीर बनने की आशा में जा रहा है तो कोई पुत्र मोह में बेटे की करियर की खातिर तो कोई उम्र के आखिरी पड़ाव में राम मिलें या न मिलें, माया मिली तो नैया पार। इसी चक्कर में वनांचल चंचल हो गया है।