- कम्युनिस्ट आंदोलन के 100 साल : उपलब्धि, सीख और चुनौतियां विषय पर नागरिक संवाद आयोजित
बेगूसराय | हिंदुस्तान में एक तरफ जहां गड्ढा खोदने का काम जारी है वहीं आजादी की विरासत को नकारा जा रहा है। पूरे देश का सपना खतरे में है। अडाणी-अंबानी खूंखार पूंजीवादी हैं। ये बातें भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने पन्हास गार्डेन में कही। मौका था कम्युनिस्ट आंदोलन के 100 साल : उपलब्धि, सीख और चुनौतियां विषय पर नागरिक संवाद परिचर्चा का। उन्होंने कम्युनिस्ट की मजबूत विरासत की चर्चा करते हुए कहा कि आजादी के आंदोलन के दौरान दो महत्वपूर्ण सवाल : अंग्रेज भारत छोड़कर कैसे जाएंगे और आजाद देश में हमारा समाज कैसा होगा? इन दोनों मुद्दों पर कम्युनिस्टों ने काम किया। बाबा साहब एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। जिस मनुस्मृति को आज के समय में संविधान बताया जा रहा है उसका दहन करके ही बाबा साहब ने संविधान का निर्माण किया था। आज हिन्दू राष्ट्र निर्मल समिति बनाई गई है तो रामायण, गीता, मनुस्मृति और अर्थशास्त्र को मिलाकर संविधान बनाया जा रहा है। 2025 के बिहार के विधानसभा चुनाव की ओर इशारा करते हुए कहा कि हमें जनता की समस्याओं पर संघर्ष करने की जरूरत है।
कम्युनिस्ट पार्टी ने ही सबसे पहले पूर्ण स्वराज की बात कही : अनिश अंकुर
बिहार प्रलेस के महासचिव अनीश अंकुर ने कहा कि बंगाल, त्रिपुरा, केरल में अब तक बने किसी भी मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा। कम्युनिस्ट पार्टी देश की पहली पार्टी है जिसने पूर्ण स्वराज की बात कही। आजाद भारत में जनपक्षधर कानून कम्युनिस्ट पार्टी ने पास कराया। आज जबकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला हो रहा है तो ऐसे समय में हम कैसे सोचें, क्या विचार करें और जनता तक बात कैसे पहुंचाएं, इसका उपाय करना चाहिए। आर्थिक व सामाजिक संघर्ष करने के लिए हमें तैयार रहना होगा। वहीं बिहार हेराल्ड के संपादक विद्युत पाल ने कम्युनिस्ट के स्वर्णिम इतिहास पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत की पहचान को कम्युनिस्ट पार्टी ने बरकरार रखा। 1946 ई. में दिखा दिया कि कम्युनिस्ट बंटे हुए नहीं हैं। कम्युनिस्ट पार्टी हमेशा जनता के साथ रही है और आगे भी रहेगी।
कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़े लोगों को सम्मानित किया
कार्यक्रम का संचालन संतोष महतो और वतन कुमार ने किया। मुख्य अतिथि के अलावे आशा नेत्री, शोषित समाज दल के राष्ट्रीय सचिव केदारनाथ भास्कर, लोकगायक सचिदानन्द पाठक, अधिवक्ता मजहर आलम, RYF के महासचिव नीरज कुमार, दिवाकर कुमार समेत कई गणमान्य मौजूद थे। कार्यक्रम के अंतिम सत्र में कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़े बुजुर्गों एवं शहादत देने वाले परिजनों को सम्मानित किया गया।
