- ‘द प्लेयर्स एक्ट’ का चौथा राष्ट्रीय महोत्सव रंग उत्सव जारी
- आजमगढ़ की टीम ने हंसुली नाटक का किया मंचन
बेगूसराय | ‘द प्लेयर्स एक्ट’ द्वारा नाटक के जरिए भारतीय परिवारों में भौतिकता के कारण मूल्यों की आई गिरावट का जीवंत चित्रण किया गया। कहानीकार डॉ. अखिलेश चन्द्र की लिखी कहानी पर राजकुमार शाह द्वारा रूपांतरित नाट्य आलेख उन सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों पर भौतिकता के उस रंग रोगन को दर्शाता है जिससे आज परिवार में आपसी रिश्ते तार-तार हो रहे हैं।

परिवार की परम्परा, सम्मान और संस्कारों का प्रतीक है हंसुली
‘‘हंसुली’’ सिर्फ एक आभूषण नहीं वरन परिवार की सत्ता का सूचक भी है। इसीलिए माया अपनी सास चिन्ता से उसे किसी भी दशा में पाना चाहती है, क्योंकि वह परिवार की परम्परा, मान सम्मान और संस्कारों का प्रतीक है। माया की छटपटाहट उसी पारिवारिक विरासत को सहेजे रखने की है। परन्तु अगली पीढ़ी इतनी संवेदनशील और भावुक नहीं है जो अपने पूर्वजों के संस्कारो को जी सके। भले ही घर की इज्जत पंचायत में तार-तार हो जाए, पर वह हंसुली के दो टुकड़े करने पर आमादा है। निजी स्वार्थ के आगे रिश्ते निभाने के बजाय ढोंग भर रह जाते हैं।

नाटक के माध्यम से संदेश
नाटक भारतीय परिवारों में भौतिकता के कारण आई मूल्यों की गिरावट को सहज ढंग से उजागर करता है। कुल मिलाकर दर्शकों को एक शानदार प्रस्तुति को देखने और उसका आनंद उठाने का अवसर मिला।
नाटक में किसने क्या भूमिका निभाई
कथावाचक की भूमिका में राजकुमार शाह, माया की भूमिका में मोनी साहनी, बांके की भूमिका में नवीन चन्द्रा, गौरव की भूमिका में राजेश कुमार, चंदन की भूमिका में सुनील कुमार, लीला की भूमिका में शीतल साहनी, मंजू की भूमिका में मनी अवस्थी, नन्दा की भूमिका में माधुरी वर्मा, भोला काका की भूमिका में रूप नारायन निषाद, कोरस, ग्रामवासी एवं गायकवृंद के रूप में आदित्य विश्वकर्मा, राजन कुमार झा ने अपने सधे अभिनय और सशक्त संवाद शैली से कहानी को जीवन्तता प्रदान किया। तुषार बंधोकर के बांसुरी वादन ने पूरे नाट्य संगीत को कर्णप्रिय और सरस बनाए रखा।

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