झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता चंपाई सोरेन शुक्रवार को रांची में विधिवत भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। धान के खेत में कमल खिल गया। इसके साथ ही राज्य की राजनीति में 15 दिनों से व्याप्त सस्पेंस का भी अंत हो गया।
गौरतलब है कि भाजपा के इस चाणक्य नीति के समानांतर झामुमो ने अपने गोरिल्ला नीति के तहत कोल्हान के ही संथाल आदिवासी नेता व चंपाई सोरेन के विश्वासपात्र घाटशिला विधायक (जूनियर टाइगर) रामदास सोरेन को मंत्रिमंडल में शामिल कर चंपाई दा को पूर्व आवंटित विभाग भी रामदास को सुपुर्द कर दिया।
भाजपा का अनायास सौदा नहीं है चंपाई से सौदा
भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व की ओर से चंपाई सोरेन का सौदा अनायास लिया गया कदम नहीं हो सकता। क्योंकि बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, समीर उरॉव जैसे कद्दावर आदिवासी नेता पूर्व से ही उसके पास हैं। कहा जाता है बाबूलाल मरांडी ने दिल्ली दरबार में चंपाई के आगमन के विरुद्ध अपना पक्ष भी रखा। इससे स्पष्ट है कि भाजपा में घरवाली और बाहरवाली का खेल होना तय है। इधर, भाजपा के पास झारखंड में गंवाने के लिए कुछ खास नहीं बचा है तो फिर चंपाई के बहाने एक तीर से दो निशान (झामुमो को कमजोर कर इंडिया गठबंधन पर प्रहार) साधने की युक्ति हाे सकती है।
समझिए, चंपाई के लिए रेड कार्पेट के मायने क्या
फिर, चंपाई के लिए रेड कार्पेट का क्या मायने? भाजपा जानती है कि आगामी विधानसभा चुनाव में वह अच्छा प्रदर्शन नहीं करने जा रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का ईडी प्रकरण में जेल जाना उन्हें पूरे आदिवासी समाज का अनापेक्षित सहानुभूति दिला गया। ऐसी स्थिति में चंपाई सोरेन का झामुमो/हेमंत सोरेन पर अपमान का आरोप कमतर प्रभावी होगा। उधर,चंपाई सोरेन की स्थिति भी कुछ इस कदर उलझ गई है जिससे पार पाना मुश्किल हो गया है। झामुमो एवं आदिवासी समाज में उनकी विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ गई है। वे झामुमो छोड़कर जाने वाले एक-से-बढ़कर एक दिग्गज नेताओं-सूरज मंडल, स्टीफन मरांडी, हेमलाल मुर्मू, दूर्गा सोरेन, गीता कोड़ा का हश्र देखे हैं और जानते भी हैं। उनके मुख्यमंत्री काल में अपने क्षेत्र के लोगों के लिए उन्होंने वैसा कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है जिसके सहारे क्षेत्र को प्रभावित किया सके।
इसी चश्मा काे ढूंढने दिल्ली की यात्रा की थी
वैसे तो परिवर्तन प्रकृति का नियम है, किंतु धान के बिना कमल से जीवन संभव है, यह तो चंपाई दा ही बता सकते हैं। भाजपा देश का सबसे धनी पार्टी है। ऑपरेशन कमल का करामात देश के कई राज्यों ने देखा-भोगा है तो खेत में धान हो या न हो बाजार खुला है। अन्यथा जीवन भर जल, जंगल, जमीन के लिए संघर्ष करने वाला कोल्हान का टाइगर भगवा पट्टा धारण करते ही जय श्री राम से बंग्लादेशी घुसपैठिया, झारखंड आंदोलनकारियों के साथ कांग्रेसी दमन, झारखंड भाजपा की देन, मोदी जी की दृढ़ता एवं शाह के कुशल राजनीतिक प्रबंधन के जपनाम से अपने पहले भाजपाई नेता के रूप में भाषण क्यों दिया। यही है दृष्टिदोष दूर करने वाला सही चश्मा जिसे ढूंढने उन्होंने दिल्ली यात्रा वाया कोलकता की।
आदिवासी समाज में चंपाई की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में
संथाल आदिवासी समाज, खासकर कोल्हान के वे हेवीवेट नेता हैं, इसकी परीक्षा आगामी विधानसभा चुनाव में होगी। वैसे तो भाजपा में उनकी इंट्री बड़े ही धूमधाम, तड़क-भड़क के साथ हुई, लेकिन गौर करने वाली बात यह कि पूर्व के विधानसभा चुनाव में उनकी जीत का अंतर कभी भी शानदार नहीं रहा। वे बहुत ही मामूली वोटों से अपने प्रतिद्वंद्वी को हराते रहे हैं। आज का आदिवासी समाज 20 वर्ष पहले वाला नहीं रहा। उनमें अभूतपूर्व जागरूकता आई है। वे झामुमो के पूर्व टाइगर से सरना कोर्ड, जाति जनगणना, अनुसूचित जाति/जनजाति आरक्षण के सवाल पर उन्हें घेरेंगे। ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत अपमान की बात कर भगवा चोला धारण करने वाले चंपाई दा कोल्हान प्रमंडल के कुल 14 सीटों में से कितनी सीट भाजपा की झोली में डलवा सकेंगे, यह भविष्य बताएगा, लेकिन आदिवासी समाज में उनकी विश्वसनीयता संदेह के घेरे में आ गई है।