झारखंड झंकृत है, गुले-गुलजार है। राजनीतिक गतिविधियों की बहार है, नेताओं का रेलम-रेल है। सन्निकट झारखंड विधानसभा चुनाव की घोषणा घटाटोप काले बादलों से घिरे आकाश से बारिश होने ही वाली हो, की तरह अटकान में है। सामान्य वीआइपी की कौन कहे पीएम, सीएम, गृहमंत्री, रक्षामंत्री, कृषिमंत्री, निर्वाचन आयोग के आयुक्त आदि अति विशिष्ट माननीयों के काफिले के हूटर/सायरन की सांय-सांय गुंजायमान है। ऊपर से आश्विन मास के सुनहरे मौसम की धमक जैसे जल्दी में ही बहुत कुछ कहने को बेताब है। विभिन्न राजनीतिक दल जनता को रंगीन सपने बेच रही है, सब्जबाग दिखा रही है। कोई 200 यूनिट फ्री बिजली की बात तो कोई महिलाओं के खाते में प्रति माह हजार-दो हजार रुपए देने की बात कर रहा है। सस्ता गैस सिलेंडर, बेरोजगारों को रोजगार, कृषकों का ऋण माफी आदि-आदि के वायदे युक्त भाषणों, पोस्टरों, घुमंतू वाहनों से प्रचार-प्रसार जारी है और यहां की जनता खासकर सुदूरवर्ती गांवों के भोले-भाले, सहज-सरल आदिवासी इस प्रपंच का भी आनंद ले रहे हैं।
पढ़िए… अचानक झारखंड पर इतनी मेहरबानी क्यों
इधर 2 अक्टूबर को झारखंड के हजारीबाग में पीएम नरेंद्र मोदी का आगमन है। बीते 15 सितंबर को वे यहां सिंहभूम की जनता को संबोधित कर चुनावी सौगात की इनायत कर गए थे। इस मात्र 17-18 दिनों के भीतर इस अकिंचन झारखंड पर इतनी मेहरबानी के मायने क्या हैं? क्या कोल्हान सहित उत्तरी-दक्षिणी सिंहभूम यानी झारखंड विधानसभा की कुल 81 सीटों में से 25-30 को अपने पक्ष में तो साधना नहीं है? उधर, 3 अक्टूबर को झारखंड के एकमात्र ‘नामी’ एनसीपी विधायक कमलेश सिंह का रांची में एक बड़े समारोह में भाजपा का दामन थामने की खबर हवा में तैर रही है। इस बदलाव के सूत्रधार भी जोड़-तोड़ विशेषज्ञ भाजपा झारखंड विधानसभा चुनाव सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा को बताया जा रहा है। वैसे अन्य उन्नत प्रदेश की अपेक्षा झारखंड को सॉप्ट टारगेट मानकर भाजपा नेतृत्व हेमंत सरकार को शुरू से ही अस्थिर/अपदस्थ करने के लिए ‘ऑपरेशन लोटस’ में लगी रही, लेकिन चालू विधानसभा के कार्यकाल की पूर्णाहुति के रूप में चंपाई सोरेन उसे आशा हाथ लगी।
अस्तित्व का सवाल मानकर संघर्ष कर रहीं सभी पार्टियां
झारखंड विधानसभा का यह चुनाव पिछले सभी चुनावों से अलग एवं विशिष्ट है। इसलिए क्या भाजपा, क्या झामुमो, क्या आजसू…सभी राजनीतिक पार्टियां अस्तित्व का सवाल मानकर संघर्ष कर रही हैं, जिसकी गहमागहमी यहां की फिजा में व्याप्त है। बीजेपी खासकर मोदी-शाह के लिए तो यह प्रतिष्ठा से अधिक अस्तित्व का प्रश्न बन गया है। इसका असर उसके लिए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय है। बीजेपी पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या गुजरात लॉबी का सिक्का चलेगा, इसके निर्णय में आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव का महत्वपूर्ण भूमिका होने वाली है। यहां भाजपा का कमजोर प्रदर्शन मोदी के लिए सबसे असाह्य, नापसंदीदा संजय विनायक जोशी का भाजपा अध्यक्ष के दावेदारी को सशक्त बनाएगी। उधर, मोदी का जलवा भाजपा पर कमजोर होगा। पार्टी के असंतुष्ट नेता भाजपा के कांग्रेसी करण, बाहरी-भीतरी के मुद्दे/मोदी-शाह का संगठन में भी एकाधिकार आदि अनेक प्रश्न, जो 2014 से दम साधे हुए हैं, उसे हवा देगी।
यह चुनाव हेमंत सोरेन का राजनीतिक हैसियत भी तय करेगी
इसी तरह झारखंड के संदर्भ में हेमंत सोरेन की स्वीकार्यता को यह चुनाव रेखांकित करेगी। झारखंड आंदोलन के प्रणेता, झामुमो के सुप्रीमो और हेमंत के पिता दिशोम गुरु शिबू सोरेन अपने जीवन के अंतिम दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में घर, पार्टी संगठन और आदिवासी समाज खासकर संथाल में उनकी पकड़, विश्वसनीयता, स्वीकार्यता को यह चुनाव दशा-दिशा देगी। उसी के सापेक्ष हेमंत सोरेन का राष्ट्रीय राजनीति विशेषकर इंडिया गठबंधन में उनकी राजनीतिक हैसियत को तय करेगी। इंडिया गठबंधन और एनडीए के घटक दलों में प्रमुख कांग्रेस, आजसू, राजद का स्टेक समूह में तो प्रभावकारी है, किंतु कांग्रेस को छोड़कर अन्य शेष दलों में से किसी भी दल का आधार-पैन झारखंडी नहीं है। सूत्रों के अनुसार भाजपा के साथ आजसू व जदयू का सीट शेयरिंग फार्मूला तय हो चुका है। घोषणा पितर पक्ष के बाद किसी दिन भी हो सकती है।
जनता स्वाति की बूंद के माफिक चुनाव घोषणा का इंतजार कर रही
गौरतलब है कि बीते 28-29 अगस्त को भूतपूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के भाजपा में शामिल होने के साथ ही झारखंड की राजनीतिक फिंजा में बदलाव शुरू हुआ, जो विधानसभा चुनाव के निकट पहुंचने एवं हरियाणा, जम्मू-कश्मीर व महाराष्ट्र में भाजपा का ग्राफ गिरने के साथ उनके केंद्रीय नेतृत्व का फूल फोकस झारखंड पर शिफ्ट कर दिया गया। फिलहाल पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, प्रदेश भाजपा चुनाव प्रभारी की भूमिका नेपथ्य में चली गई है। इनके स्थान पर भाजपा को मधु कोड़ा एवं चंपाई दा को फोकस में रखना लाभकारी लग रहा है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो चंपाई दा को अपने पुराने घर में लाने की कवायद भी तेज हो चली है। इधर, मोदी-शाह सहित पूरा मंत्रिमंडल यानी दिल्ली झारखंड में विचरण कर रही है। इस कशमकश में शोर है, कोलाहल है। यहां की जनता विधानसभा चुनाव की घोषणा स्वाति की बूंद के माफिक कर रही है।