बेगूसराय (गोदरगावां) | हमारा स्वतंत्रता संग्राम नस्लवादी संग्राम नहीं था। हम गोरी चमड़ी के खिलाफ नहीं थे। हम अंग्रेजों के राज करने के खिलाफ थे। स्वतंत्रता आंदोलन में सभी धर्मों के लोगों ने हिस्सा लिया था। हमारे देश में विविधता में जो एकता है उसे हमने कुर्बानियां देकर हासिल की हैं। महात्मा गांधी जितने अंग्रेजों के खिलाफ थे उतने ही देश में व्याप्त सामाजिक बुराइयों के भी। ये बातें वैज्ञानिक, चिंतक एवं शायर गौहर रजा ने बुधवार को गोदरगांवा स्थित देवी वैदेही सभागार के आनंद स्मृति हॉल में कही।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर आयोजित ‘गांधी : विविधता में एकता का नाम भारत’ विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए गौहर रजा ने कहा कि हमारे देश में हमेशा से परंपराओं की दो धाराएं रही हैं। पहली धारा हिंसा की परंपरा, नफरत की परंपरा और दूसरों को बाहर निकालने की परंपरा है। दूसरी धारा प्यार की परंपरा, मुहब्बत की परंपरा, नई चीजों को जानने की परंपरा और विज्ञान को आगे बढ़ने की परंपरा रही है। आज जो स्थितियां हैं उसमें हमें ऐसे हिंदुस्तानी ख्वाब तैयार करने पड़ेंंंगे जिसमें हर हिंदुस्तानी शामिल हो सके।
पैरों से पैदा होने वाला सिर से पैदा होने वाले के बराबर नहीं हो सकता
चिंतक गौहर रजा ने सवाल उठाया कि जिन 500-600 सांसदों ने संविधान को लागू करने के हस्ताक्षर किए थे क्या वे इस किताब में यकीन रखते थे? क्या वे सब यह मानते थे कि औरत-मर्द बराबर हैं? दलित और ब्राह्मण बराबर हैं? हर बच्चे को पढ़ने और शिक्षा का हक है? मेरा मानना है कि उनमें से बहुमत इन बातों को नहीं मानता था। शायद बहुमत अंबेदकर के हाथों का पानी भी नहीं पीता। फिर उस संविधान रूपी किताब पर दस्तखत क्यों किए? इसे क्यों लागू किया? क्योंकि असहमति रखने वालों को यकीन था कि इस किताब से कुछ नहीं होना। समाज में कोई बदलाव नहीं आएगा। हमारी सत्ता में कोई बदलाव नहीं होगा। पर ऐसा नहीं हो पाया। आज के नेता बाबाओं के पैर छूकर सत्ता प्राप्त कर रहे हैं। भाजपा देश को 2000-2500 साल पीछे ले जाना चाहती है।
गांधी के विचारों में देश को जोड़ने की ताकत : एमएलसी सर्वेश कुमार
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए दरभंगा स्नातक क्षेत्र से विधान पार्षद सह विप्लवी पुस्तकालय के संरक्षक सर्वेश कुमार ने कहा कि गांधी के विचारों में देश को जोड़े रखने की ताकत है। गांधी जी ने आत्मनिर्भरता की बात कही थी। हमारे देश की संस्कृति अनूठी है। यहां समृद्धि की संस्कृति है, विचारों की संस्कृति है, भाषा की संस्कृति है और सहमति की संस्कृति है। विधान पार्षद ने कहा कि समाज को शिक्षित करना पुस्तकालय का मूल काम है। उन्होंने कहा कि विप्लवी पुस्तकालय की बेहतरी के लिए जो कुछ करना संभव होगा, वो मैं करूंगा।
गांधी ने भारत को समझने की कोशिश यूरोप से ही की थी : प्रो. प्रमोद
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए बिहार विश्वविद्यालय के प्रो. प्रमोद कुमार ने कहा कि अगर हमें गांधी को समझना है तो उनके आंदोलनों को उनकी आश्रम व्यवस्था के साथ समझना होगा। आज हम गांधी जी के जिन विचारों को किताबों के माध्यम से समझ रहे हैं उसे मोहनदास करमचंद गांधी ने आश्रम व्यवस्था से समझा। आज हम विविधता में एकता की बात करते हैं, लेकिन क्या आपको पड़ोस में यह बात दिखती है? भारतीयता धीरे-धीरे दरक रही है। भारत को उपभोक्तावादी देश के रूप में देखा जा रहा है।
गांधी का मतलब कथनी और करनी में सामंजस्य बैठाना : अब्दुल बारी सिद्दकी
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विधान पार्षद सह पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दकी ने कहा कि गांधी का मतलब कथनी और करनी में सामंजस्य बैठाना है। गांधी जो कहते थे वही करते थे। उन्होंने वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर गांधी जी आज जिंदा होते तो उन्हें कई बार गोलियां खानी पड़ती। आज सोचने की जरूरत है अपने नेताओं के बारे में, अपने देश के बारे में।
दादा के हुक्के की तरह है भारतीय संस्कृति : प्रो. चंद्रभानु

विषय प्रवेश कराते हुए मिथिला विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के डीन प्रो. चंद्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि हमारी संस्कृति दादा के हुक्के की तरह है। जैसे हुक्के के सभी भागों को बदल दीजिए पर उसका स्वरूप हुक्का ही रहेगा उसी तरह विविधताओं से घिरी हमारी भारतीय संस्कृति है। गांधी जी परम वैष्णव थे। वे आस्तिक हिंदू थे। गांधी जी धर्म को व्यक्तिगत मामला मानते थे। संगोष्ठी को बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के प्रो. रमेश ऋतंभर, प्रलेस राज्य महासचिव रवींद्र नाथ राय, भाकपा जिला मंत्री एवं पूर्व विधायक अवधेश राय, राज्य प्रलेस कोषाध्यक्ष सुनील सिंह, पुस्तकालय अध्यक्ष रमेश प्रसाद सिंह, संयुक्त सचिव रामबहादुर यादव ने भी संबोधित किया।

वातानुकूलित वाई-फाईयुक्त वाचनालय का उद्घाटन
कार्यक्रम की शुरुआत में महात्मा गांधी की प्रतिमा पर अतिथियों द्वारा माल्यार्पण किया गया। इसके बाद वातानुकूलित वाई-फाई निःशुल्क वाचनालय का उद्धघाटन विधान पार्षद सर्वेश कुमार ने किया। इसके बाद उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, गोदरगावां की छात्राओं ने गायन प्रस्तुत किया। स्वागत भाषण राजेन्द्र राजन ने, मंच संचालन नवेन्दु प्रियदर्शी और धन्यवाद ज्ञापन कवि सत्येंद्र कुमार ने किया।
मौके पर ये लोग थे मौजूद
इस अवसर पर प्रलेस राज्य सचिव राम कुमार सिंह, नरेंद्र कुमार सिंह, राजेन्द्र नारायण सिंह, अमरनाथ सिंह, अनिल पतंग, कला कौशल, शशिकांत राय, भूषण सिंह, विष्णुदेव कुंवर, पुस्तकालय सचिव अगम कुमार, स्वाति गोदर, कुंदन कुमार बीहट, अमरशंकर झा, डॉ शशिभूषण प्र सिंह, डॉ रामरेखा सिंह, राजकिशोर सिंह, पवन कुमार सिंह, जुलुम सिंह, प्रवीण प्रियदर्शी, प्रभा कुमारी, रंजू ज्योति, राजेश कुमार, कमल वत्स, मनोरंजन विप्लवी, अवनीश राजन, शमशेर आलम, राघवेंद्र कुमार, कैलाश यादव, रबिन जी, रामचंद्र ठाकुर, सुदर्शन कुमार, उमेश राम, प्रशांत राय आदि मौजूद थे।

1 thought on “Gandhi Jayanti : कुर्बानियां देकर हासिल की है विविधता में एकता : गौहर रजा”
अच्छी रिपोर्टिंग.
बेगूसराय की पहचान मार्क्स-गॉंधी एक समान!
बड़े भाई श्री राजेन्द्र राजन जी को ऐसे अनूठे कार्यक्रम आयोजित करवाने के लिए सादर प्रणाम.