झारखंड की भोली-भाली, सीधी-सादी जनता ने झारखंड विधानसभा की कुल 81 सीटों में से 56 सीट इंडिया गठबंधन, इसमें भी सबसे अधिक झारखंड मुक्ति मोर्चा को 34 सीटों का आशीर्वाद देकर नॉन बॉयोलॉजिकल, दैवीय शक्तियों (सुर-असुर) से लैस, सर्वशक्तिमान वर्तमान भाजपा के पर्याय मोदी व शाह को जोर का झटका धीरे से दिया है। भाजपा को मात्र 21 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा जबकि इंडिया गठबंधन ने बहुमत से 15 सीटें अधिक हासिल की हैं। हालांकि झामुमो का वोट शेयर 23.47 फीसदी ही रहा जबकि भाजपा का वोट शेयर 33.20 प्रतिशत यानी झामुमो से 10 फीसदी ज्यादा।
भाजपा की हार का एक कारण यह भी तो नहीं
लोकसभा चुनाव 2024 में 400 पार के नारे पिटने के साथ ही मोदी व शाह (गुजरात लॉबी) को अत्यंत आंतरिक एवं बाह्य दबाव का सामना करना पड़ा था। ऊपर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भृकुटी अलग तनी रही। ऐसी स्थिति में साल के अंत तक चार राज्यों के विधानसभा चुनाव हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड उनके लिए अस्तित्व का प्रश्न बन गया। द्रष्टव्य है कि जम्मू-कश्मीर व हरियाणा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के वक्त विभिन्न कारणों से निर्वाचन आयोग पर विपक्ष व कतिपय राजनीतिक प्रेक्षकों की अंगुली उठी। इसी तरह महाराष्ट्र एवं झारखंड विधानसभा चुनाव घोषणा के क्रम में महाराष्ट्र का विलंब से एवं झारखंड का समय से एक माह पूर्व चुनाव कराए जाने का भी मुद्दा उठा।
चाल, चेहरा और चरित्र … क्रॉनीकैप्टलिज्म का खेल खूब खेला गया
ऐसी भी बात नहीं कि चाल, चेहरा और चरित्र पर एकाधिकार रखने वाली पार्टी झारखंड में क्रॉनीकैप्टलिज्म के खेल में कहीं पीछे रही। अडाणी का थर्मल पावर प्लांट गोड्डा में स्थापित है। वहां के सांसद निशिकांत दुबे काफी ख्यात हैं। इसी तरह और भी करीब डेढ़ दर्जन उद्योगपतियों का कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट, सीमेंट व अन्य खनिज से संबंधित उद्योग-धंधा झारखंड में है, वे भी सक्रिय रहे। किंतु जिन आदिवािसयों की जमीन को कौड़ी के भाव में लिया गया और वे विस्थापन का दंश झेल रहे हैं, उन्होंने भी इस चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज करा धन्ना सेठों की वजनदार थैली को हल्का कर दिया।
हेमंत से आशा… झारखंड आंदोलन के कोर इश्यू को पूरा करना होगा
जो भी हो झारखंड का कमान अब इंडिया गठबंधन के नेता हेमंत सोरेन के हाथ में है। उन्हें उन शेष कार्यों को अंजाम तक पहुंचाना होगा जो झारखंड आंदोलन का कोर इश्यू रहा है। मसलन लैंड बैंक रद्द करना, पेशा कानून को कड़ाई से लागू करना, सीएनटी व एसपीटी एक्ट के विचलन पर घोर पाबंदी, स्थानीयता की सर्वमान्य परिभाषा, बाहरी-भीतरी की राजनीति का अंत, बेरोजगारों को रोजगार आदि। अब समय ही बताएगा कि झारखंड के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री पंजाब के प्रताप सिंह कैरों बनते हैं या मुख्यमंत्री की सूची के 14वें मुख्यमंत्री मात्र!
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